नई दिल्ली: बंगाल का दुर्गा पूजा और नॉर्थ इंडिया का दशहरा के बारे में तो आपने अक्सर सुना होगा लेकिन क्या कभी मैसूर के दशहरा को बारे में आपने सुना या देखा है? आज हम आपक मैसूर के दशहरा की कई खासियत के बारे मे ंबताएंगे जिसे जानने के बाद आप एक बार वहां जाने का मन तो बना ही लेंगे। बुराई पर अच्छाई के जीत के समारोह के रूप में दशहरा का त्यौहार मनाया जाता है, जिसे विजयादशमी भी कहते हैं। दशहरा के साथ “नवरात्रि” का समापन होता है।
इसी समय भारत के पूर्वी और पूर्वोत्तर राज्यों में देवी दुर्गा को समर्पित, दुर्गा पूजा मनाई जाती है। पुराणों के अनुसार, देवी ने राक्षस महिषासुर का वध किया था, और उनकी जीत का दिन विजयादशमी के रूप में मनाया जाता है। हालांकि, भगवान राम ने अपनी भार्या सीता का अपहरण करने वाले दुष्ट राक्षस रावण पर जिस दिन विजय पायी थी, उस तिथि को उत्तरी, पश्चिमी और दक्षिणी भारत में दशहरा का उत्सव मनाया जाता है। नौ रातों तक चलने वाला नवरात्रि उत्सव देवी दुर्गा और देवी सरस्वती को समर्पित होता है, और दशहरा के दिन इसका समापन होता है।
दशहरा सबसे पावन और धार्मिक त्योहारों में से एक है और इस अवसर पर सम्पूर्ण भारत में विशाल भव्य समारोह किये जाते हैं। परन्तु, कर्नाटक राज्य के एक प्रमुख शहर, मैसूर में दशहरा का उत्सव सभी त्योहारों में सबसे भव्य माना जाता है। मैसूर में दशहरा देखने के लिए देश भर से लोग आते हैं। वस्तुतः कर्नाटक सरकार ने दशहरा को अपने “नादाहब्बा” (राजकीय त्यौहार) का दर्जा दिया है। इस वैभवशाली नगर के दशहरा में राक्षस महिषासुर पर देवी चामुंडेश्वरी (देवी दुर्गा का एक रूप) की जीत का उत्सव मनाया जाता है।
इस अवसर पर एक विशाल शोभा-यात्रा, जिसे जम्बूसवारी कहा जाता है, प्रसिद्ध मैसूर महल से निकल कर बन्नीमंडप में विसर्जित होती है, जहां भक्तगण बन्नी वृक्ष (वानस्पतिक नाम प्रोसोपिस स्पाइसीजेरा, जिसे उत्तर भारत में शमी कहते हैं) की पूजा करते हैं। देवी चामुंडेश्वरी को समर्पित इस शोभा-यात्रा में उनकी प्रतिमा को स्वर्ण से बने और लगभग 750 किलोग्राम वजन के एक विशाल हौदे पर रखा जाता है, जिसे भव्य रूप से अलंकृत एक हाथी द्वारा ढोया जाता है। दक्षिण भारत के अन्य उत्सवी शोभा-यात्राओं के समान ही अलंकृत हाथी जम्बूसवारी के भी महत्वपूर्ण अंग होते हैं। इन हाथियों को रंग-बिरंगे रूप में सजाया जाता है और स्वर्ण की झालरों से अलंकृत किया जाता है। शोभा-यात्रा एक मशाल जुलूस, पंजीना कवयत्थू के साथ बन्नीमंडप मैदान में समाप्त होती है।
मैसूर महल में दशहरा उत्सव का अपना विशेष समारोह होता है। नवरात्रि और दशहरा की पूरी अवधि तक यह महल करीब 1,00,000 बल्ब की रोशनी में नहाया रहता है, और आम लोगों को चिन्नदा सिंहासन (‘स्वर्ण सिंहासन’, जिसे कन्नड़ भाषा में रत्न सिंहासन भी कहा जाता है) के दर्शन की अनुमति मिलती है। यह सिंहासन वोडेयार (मैसूर का राज परिवार) की संपत्ति है, जिसे केवल इस उत्सव के समय प्रदर्शित किया जाता है। मैसूर के दशहरा उत्सव में भारत का भव्य और पारंपरिक पहलू अपने सर्वश्रेष्ठ रूप में दिखाई देता है, और इस तरह इस भव्य और पावन उत्सव को हर किसी को अवश्य देखना चाहिए।
मैसूर का दशहरा जिसे नाद हब्बा के नाम से भी जानते हैं, बड़ी शान और उत्साह के साथ मनाया जाता है। किसी और जगह आपको इतने रॉयल तरीके से दशहरा मनाया जाता नहीं दिखेगा। इस त्यौहार का हिस्सा बनने के लिए लोगों में भी जबरदस्त उत्साह दिखाई देता है। और कोई वजह न मिले तो दशहरे को कितने शाही अंदाज में मनाया जाता है, यह देखने मैसूर पहुंचें।
इन 10 दिनों के इवेंट में मैसूर को जैसे एक नया जीवन मिल जाता है। यहां उत्तर भारत की तरह नहीं बल्कि एक अलग अंदाज में दशहरा मनाया जाता है, जहां रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण के पुतले जलाए जाते हैं। मैसूर में एकदम अलग अंदाज में 10 दिन तक सेलिब्रेशन चलता रहता है। आपकी जानकारी के लिए बता दें मैसूर का नाम महिषासुर के नाम पर पड़ा जिसे दुर्गा के एक रूप देवी चामुंडेश्वरी ने मारा था।(Travel News: घूमने के लिए भारतीयों की पहली पसंद है मास्को, जानिए क्यों)
मैसूर के दशहरेका क्या मजा है यह आप वहां जाकर खुद महसूस कर सकते हैं। ट्रिप प्लान करने से पहले कुछ बातों का ध्यान जरूर रखें।
कैसे पहुंचे
प्लेन और ट्रेन से सभी बड़े शहरों से मैसूर आसानी से पहुंचा जा सकता है। अगर आपको डायरेक्ट फ्लाइट न मिले तो बेंगलुरु तक पहुंचकर यहां से कैब कर सकते हैं। मैसूर से बेंगलुरु की दूरी लगभग 145 किमी है। ट्रिप प्लान करने से पहले यह काम की बात जान लें कि दशहरे से 4 दिन पहले मैसूर पहुंचने का बेस्ट टाइम है। दशहरे के दौरान यहां काफी भीड़ होती है तो आप इसकी प्लानिंग पहले से कर लें और होटल पहले ही बुक कर लें।(वीकेंड में दिल्ली के आसपास इन खूबसूरत रिजॉर्ट में बिताएं खुशनुमा और सुकुन के पल)