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लद्दाख एक रोमांचित सफर

नई दिल्ली: लद्दाख अपने अनूठे प्राकृतिक सौंदर्य के लिए बेमिसाल है। यह इलाका ट्रैकिंग, पर्वतारोहण और राफ्टिंग के लिए काफी लोकप्रिय है। यूं तो यहां पहुंचना ही किसी रोमांच से कम नहीं लेकिन यहां आने

India TV News Desk
Published on: April 23, 2015 14:29 IST
लद्दाख के खूबसूरत...- India TV Hindi
लद्दाख के खूबसूरत अनुभव जिंदगी भर याद रखेगें आप

नई दिल्ली: लद्दाख अपने अनूठे प्राकृतिक सौंदर्य के लिए बेमिसाल है। यह इलाका ट्रैकिंग, पर्वतारोहण और राफ्टिंग के लिए काफी लोकप्रिय है। यूं तो यहां पहुंचना ही किसी रोमांच से कम नहीं लेकिन यहां आने वालों के लिए उससे भी आगे बेइंतहा रोमांच यहां उपलब्ध है। ट्रैकिंग के भी यहां कई रास्ते हैं। ट्रैकिंग व राफ्टिंग के लिए तो यहां उपकरण व गाइड आपको मिल जाएंगे लेकिन पर्वतारोहण के लिए भारतीय पर्वतारोहण संस्थान से संपर्क करना पड़ेगा। स्थानीय भ्रमण के लिए आपको यहां मोटरसाइकिल भी किराये पर मिल सकती है।

लद्दाख क्षेत्र में मूलत: बौद्ध धर्म की मान्यता है। इसलिए यहां की संस्कृति और तीज-त्योहार उसी के अनुरूप होते हैं। पूरे इलाके में हर तरफ आपको बौद्ध मठ देखने को मिल जाएंगे। लद्दाखी संस्कृति को संजोये रखने और पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए पर्यटन विभाग भी अपने स्तर पर हर साल सितंबर में पंद्रह दिन का लद्दाख उत्सव आयोजित करता है। प्रकृति की इस बेमिसाल तस्वीर के नजारे आपकी आंखों को कभी थकने नहीं देते

लेह में ठहरने के लिए हर तरह की सुविधा है। ज्यादातर होटल चूंकि स्थानीय लोगों द्वारा चलाए जाते हैं इसलिए उनकी सेवाओं में पारिवारिक लुत्फ ज्यादा होता है। यहां गेस्ट हाउसों में तीन सौ रुपये दैनिक किराये के डबल बेडरूम से लेकर बड़ी होटल में 2600 रु. रोजाना तक के कमरे मिल जाएंगे

लेह जाने के दो रास्ते हैं। एक श्रीनगर से (434 किलोमीटर) और दूसरा मनाली से (473 किलोमीटर)। दोनों रास्ते जून से नवंबर तक ही खुले रहते हैं। साल के बाकी समय में वायु मार्ग ही एकमात्र रास्ता है। दोनों ही रास्ते देश के कुछ सबसे ऊंचे दर्रो से गुजरते हैं। लेकिन जहां मनाली से लेह का रास्ता बर्फीले रेगिस्तान से होता हुआ जाता है, वहीं श्रीनगर का रास्ता अपेक्षाकृत हरा-भरा है।

सुबह व शाम के समय तो यहां पूरे सालभर गरम कपड़े पहनने होते हैं। जून से सितंबर तक दिन में थोड़ी गरमी होती है। हालांकि अगस्त से ही दिन के तापमान में भी गिरावट आने लगती है। गरमियों में भी दिन का तापमान यहां कभी 27-28 डिग्री से. से ऊपर नहीं जाता। सर्दियों में तो लेह तक में न्यूनतम तापमान शून्य से बीस डिग्री तक नीचे चला जाता है। इतनी ऊंचाई वाले इलाके होने से वहां हवा हल्की होती है। लिहाजा उसके लिए शरीर को तैयार करना होता है। ध्यान देने की बात यह है कि हवा हलकी होने की वजह से सूरज की रोशनी भी यहां ज्यदा घातक होती है

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