शनिवार वाड़ा का पतन
नारायणराव चीखते रहे लेकिन गार्दी हमलावरों ने उनके टुकड़े-टुकड़े कर डाले। ये सब नज़ारा रघुनाथराव ख़ामोशी से देख रहे थे। बाद में नारायणराव के शरीर के टुकड़े नदी में फ़ेंक दिए गए। नारायणराव की हत्या के बाद रघुनाथराव और आनंदीबाई ने सत्ता और शनिवार वाड़ा हथिया लिया। बाद में पेशवा प्रशासन ने रघुनाथराव, आनंदीबाई और मुसेर सिंह गार्दी पर मुक़दमा चलाया।
आज भी शनिवार वाड़ा में सैलानियों को दिन में सिर्फ बाहर का हिस्सा देखने की इजाज़त है। रात को शनिवार वाड़ा वीरान हो जाता है। इसके बावजूद आज भी कुछ लोग नदी के किनारे रात को कैंप लगाकर शनिवार वाड़ा से नारायणराव की गुहार ‘काका! माला वाचवा’ सुनने की बांट जोते हैं।