विश्वासराव और माधवराव की मृत्यु के बाद नारायणराव को पेशवा बनाया गया। उस समय उनकी उम्र सिर्फ 16 साल थी और इसीलिए उनके बालिग हेने तक रघुनाथराव को राज-प्रतिनिधि नियुक्त कर दिया गया। इससे आनंदीबाई और नाराज़ हो गईं क्योंकि अब तक सत्ता अपने हाथ में लेने की उनकी चाहत काफी बढ़ चुकी थी।
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