नई दिल्ली: असम की राजधानी दिसपुर से लगभग 7 किलोमीटर दूर कामाख्या है। वहां से 10 किलोमीटर दूर नीलाचंल पर्वत है। जहां पर कामाख्या देवी मंदिर है। जो 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। इस मंदिर का तांत्रिक महत्व भी है। धर्म पुराणों के अनुसार माना जाता है कि इस जगह भगवान शिव का मां सती के प्रति मोह भंग करने के लिए विष्णु भगवान ने अपने चक्र से माता सती के 51 भाग किए थे जहां पर यह भाग गिरे वहां पर माता का एक शक्तिपीठ बन गया। इसी कारण यहां पर माता की योनि गिरी। जिसके कारण इसे कामाख्या नाम दिया गया है।
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इस मंदिर में वैसे तो हर समय भक्तों की भीड़ लगी होती है, लेकिन दुर्गा पूजा, पोहान बिया, दुर्गादेऊल, वसंती पूजा, मदानदेऊल, अम्बुवासी और मनासा पूजा पर इस मंदिर का अलग ही महत्व है जिसके कारण इन दिनों में लाखों की संख्या में भक्त यहां पहुचतें है।
यह भी कहा जाता है कि यहां देवी का योनि भाग होने की वजह से यहां माता रजस्वला होती हैं। यह मंदिर चमत्कारों से भरा हुआ है। इस मंदिर के कई रोचक तथ्य भी है। जानिए ऐसे ही कुछ रोचक बातें जिसे आप नही जानते होगें।
- कामाख्या मंदिर सभी शक्तिपीठों का महापीठ है। यहां पर दुर्गा या अम्बें मां की कोई भी मूर्ति नही देखनें को मिलेगी। यहां पर एक कुंड सा बना हुआ है जो हमेशा फूलों से ढका रहता है।
कामादेव मंदिर
इस मंदिर के साथ लगे एक मंदिर में आपको मां का मूर्ति विराजित मिलेगी। जिसे कामादेव मंदिर कहा जाता है। इस मंदिर परिषद में आपको कई देवी-देवताओं की आकृति देखने को मिल जाएगी। माना जाता है कि यहां पर जो भी भक्त अपनी मुराद लेकर आता है उसकी हर मुराद पूरी होती है।
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