नई दिल्ली: कैलाश मानसरोवर वही पवित्र जगह है, जिसे शिव का धाम माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार मानसरोवर के पास स्थित कैलाश पर्वत पर शिव-शंभु का धाम है। यही वह पावन जगह है, जहाँ शिव-शंभु विराजते हैं।
सदियों से देवता, दानव, योगी, मुनि और सिद्ध महात्मा यहां तपस्या करते आए हैं. प्राचीन ग्रंथों के अनुसार हिमालय जैसा कोई दूसरा पर्वत नहीं है क्योंकि यहां भगवान शिव का निवास है और मानसरोवर भी यहीं स्थित है।
कैलाश पर्वत समुद्र सतह से 22068 फुट ऊँचा है तथा हिमालय से उत्तरी क्षेत्र में तिब्बत में स्थित है। चूँकि तिब्बत चीन के अधीन है अतः कैलाश चीन में आता है। जो चार धर्मों तिब्बती धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म और हिन्दू का आध्यात्मिक केन्द्र है।
तिब्बतियों की मान्यता है कि वहाँ के एक सत कवि ने वर्षों गुफा में रहकर तपस्या की थीं, जैनियों की मान्यता है कि आदिनाथ ऋषभ देव का यह निर्वाण स्थल अष्टपद है। कहते हैं ऋषभ देव ने आठ पग में कैलाश की यात्रा की थी।
कैलाश पर्वत की चार दिशाओं से चार नदियों का उद्गम हुआ है ब्रह्मपुत्र, सिंधू, सतलज व करनाली। कैलाश के चारों दिशाओं में विभिन्न जानवरों के मुख है जिसमें से नदियों का उद्गम होता है, पूर्व में अश्वमुख है, पश्चिम में हाथी का मुख है, उत्तर में सिंह का मुख है, दक्षिण में मोर का मुख है।
भारत से कैलाश मानसरोवर की यात्रा का मार्ग हल्द्वानी, कौसानी, बागेश्वर, धारचूला, तवाघाट, पांगू, सिरखा, गाला माल्पा, बुधि, गुंजी, कालापानी, लिपू लेख दर्रा, तकलाकोट, तारचेन डेराफुक और अंत में श्री कैलास आता है। मानसरोवर की यात्रा का दृश्य बड़ा ही मनोरम है। यहां पर प्रकृति का रंग गहरा नीला और बेहद बर्फीला हो जाता है।
कैलाश मानसरोवर की यात्रा करने वाले श्रद्धालु यहां आकर कैलाश जी की परिक्रमा अवश्य करते हैं। कैलाश की परिक्रमा करने के बाद मानसरोवर की परिक्रमा की जाती है। यहां के सौंदर्य को देख कर सभी को इस तथ्य पर विश्वास हो गया कि इस स्थान को ब्रह्मांड का मध्य स्थान क्यों कहा जाता है।