सोशल साइटों पर मानसिक तौर पर अत्यधिक उलझाव के कारण लोग अपने साथी के विचारों को ज्यादा जगह नहीं दे पाते।
सिप्पी कहते हैं, "सोशल मीडिया पर होने वाली बातचीत में अत्यधिक थकावट और विषय से पृथकता जैसे मुद्दे भी लोगों के मस्तिष्क को जकड़ लेते हैं, ऐसे में कोई व्यक्ति कहीं शारीरिक तौर पर रहते हुए भी मानसिक तौर पर मौजूद नहीं रहता, क्योंकि उनके मस्तिष्क में कुछ और बातें घूमती रहती हैं।"
किसी की टिप्पणी पर मिलने वाले लाइक और टिप्पणियां उसे सोशल साइट पर दिन में अधिक से अधिक बार जाने के लिए उकसाती हैं।
फेसबुक जैसे सोशल साइटों के उपयोगकर्ता सोशल साइटों पर मौजूद अन्य लोगों की जोड़ी से अपनी जोड़ी की तुलना करते हैं और कई बार वे किसी प्रख्यात हस्ती तक से अपने साथी की तुलना करने लगते हैं, जिससे संबंधों की गर्माहट में कमी आने लगती है जो समस्याओं को जन्म देता है।
इस समस्या को स्मार्टफोन ने और बढ़ा दिया है और बेडरुम में वह 'तीसरे व्यक्ति' जैसी उपस्थिति रखने लगा है, जो पति-पत्नी के बीच रोमांस पनपने के लिए जरूरी निजता को खत्म कर देता है।