वास्तु शास्त्र का मुख्य रूप से उद्देश्य है कि किसी भूखंड पर घर का निर्माण कैसे किया जाए कि उस घर में रहने वाले लोगों का भाग्य अच्छा बने उनका भविष्य उज्जवल हो आर्थिक स्थिति मजबूत हो शारीरिक स्वास्थ्य मिले इत्यादि। जिस प्रकार से हवा दिखाई नहीं देती है ठीक उसी प्रकार से निगेटिव और पॉजिटिव एनर्जी दिखाई तो नहीं देती है लेकिन धीरे-धीरे उसका प्रभाव दैनिक जीवन पर अवश्य ही पड़ता है। इसी का वर्णन वास्तु शास्त्र में भवन निर्माण से लेकर भवन निर्माण में रहने वाले लोगों का वर्णन किया गया है । वास्तु शास्त्र में भवन निर्माण, नगर नियोजन , मंदिर, जलकुंड, पार्क इत्यादि के निर्माण किस प्रकार से किया जाए जिसका प्रभाव सुंदर और प्रभावशाली हो मानव जीवन पर, पॉजिटिव प्रभाव डालें इत्यादि का वर्णन किया जाता है ।
पुराणों में है वास्तु का जिक्र
प्राचीन धर्म ग्रंथ में भी वास्तु शास्त्र का विवरण दिया गया है । गरुड़ पुराण ,भविष्य पुराण, मत्स्य पुराण, अग्नि पुराण ,मारकंडे संहिता इत्यादि में इसका जिक्र है। स्कंद पुराण में 3 अध्याय नगर नियोजन के तथ्यों का निर्माण, मंडप एवं चित्रकला का वर्णन किया गया है। गरुड़ पुराण में भी सिर्फ ग्रंथों मंडप बगीचे घर ,सैनिक छावनी या धार्मिक स्थल ,नगर, आश्रम,मूर्ति शिल्प इत्यादि का विस्तृत जानकारी वास्तु शास्त्र के अनुसार दिया गया है।
अग्नि पुराण मैं भी वास्तु शास्त्र के बारे में जैसे नगर नियोजन ,आवासीय भवन इत्यादि के बारे में विस्तृत जानकारी है। नारद पुराण में भी सरोवर, कुंड और मंदिरों के निर्माण का जानकारी है। वायु पुराण, लिंग पुराण मैं भी पहाड़ी पर बनने वाले मंदिर इत्यादि का निर्माण से संबंधित ज्ञान दिया गया है।
क्यों जरूरी है वास्तु?
हमारे ऋषि मुनि के द्वारा पहले से ही वास्तु शास्त्र की रचना की गई है जिससे कि मनुष्य जिस भूमि पर रहता है और जहां घर बनाता है उसका जीवन खुशहाल रहे और उन्हें किसी प्रकार का कोई कष्ट नहीं हो और कोई नकारात्मक ऊर्जा उनको परेशान न करे। वास्तु शास्त्र में भूखंड के अलावा दिशाओं का विशेष महत्व दिया गया है। साथ ही उस घर में घर का निर्माण होने के बाद किस तरह का कलर करना चाहिए? कौन सा पौधा लगाना चाहिए? बालकनी में क्या होना चाहिए। गेट कहां होना चाहिए? किचन कहां होना चाहिए? पूजा घर कहां होना चाहिए? बाथरूम कहां होना चाहिए? टंकी कहां होनी चाहिए? मास्टर बेडरूम किधर होना चाहिए । सेफ्टी टैंक किधर होना चाहिए इत्यादि का बहुत ही विस्तृत जानकारी दी गई है।
घर बनवाते समय रखें इन बातों का ध्यान
- जिस भूमि का मिट्टी टच पर कोमल हो और उनका सुगंध खुशबूदार हो ऐसी भूमि को ब्राह्मणी भूमि कहा जाता है और इस प्रकार की भूमि पर यदि आवासीय घर का निर्माण किया जाता है तो यह भवन धन संपदा सुख समृद्धि तथा मानसिक शांति देने वाला बताया गया है । इस प्रकार की भूमि पर मंदिर विद्यालय धर्मशाला भी बना सकते हैं।
- जिस भूमि के मिट्टी लाल रंग वाली हो और छूने पर कठोर हो और रक्त की सुगंध आती हो, इस तरह के मिट्टी क्षत्रिय वर्ण की है इस भूमि पर भी घर का निर्माण किया जा सकता है। ऐसे भूमि पर रहने वाले लोगों का साहस बढ़ता है। इस तरह की भूमि घर निर्माण के लिए शुभ होती है।
- ऐसी भूमि जिसकी मिट्टी पीली हो और छूने पर अधिक कठोर नहीं और सुगंध अन्य के समान हो ऐसी भूमि पर भी घर बनाना बहुत शुभ माना जाता है। इस तरह के भूमि बिजनेस व्यापार के लिए बहुत ही श्रेष्ठ मानी जाती है। यह भूमि लक्ष्मी प्राप्ति के लिए बहुत ही शुभ होती है।
ऐसी मिट्टी नहीं होती है घर बनाने के लिए शुभ
जिस भूमि का रंग काला हो और और मिट्टी छूने पर बहुत ही कठोर मालूम हो इस तरह का भूमि घर बनाने के लिए शुभ नहीं मानी जाती है। जिस भूमि का चयन हुआ है वह देखने में आयताकार है, या वर्गाकार है ,या वृत्ताकार है, या फिर त्रिकोण आकार है , अंडाकार है, सुमुखाकार है, या गोमुख आकार की है, धनसाकार है, पंखाकार है या मृदंगा कार भूखंड है ,अर्धचंद्राकार है, या मुसलाकार भूखंड है। हर भूखंड का प्रकार है और अलग-अलग महत्व है। कुछ तो बहुत शुभ हैं वहीं कुछ बहुत ही अशुभ है।
घर बनवाते समय रखें दिशा का ध्यान
भूखंड पर घर बनाने से पहले दिशा का निर्धारण करना बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। भूखंड के पर 10 दिशा का निर्धारण कैसे किया जाए यह बहुत ही महत्वपूर्ण है। क्योंकि जो भूखंड का निर्माण पर घर बनेगा उस पर दसों दिशाओं का होना बहुत ही आवश्यक है। वह दिशा है घर की 1.उत्तर 2.पूर्व 3.दक्षिण 4.पश्चिम फिर 5.उत्तर पूर्व ईशान 6.पूर्व दक्षिण अग्नि 7.दक्षिण पश्चिम 8.पश्चिम उत्तर 9.ब्रह्म स्थान और 10. आकाश यह सब दिशा है जिनका घर निर्माण पर बहुत ही महत्व है।
अब इस तरह के दिशा का निर्माण कैसे करेंगे? कई बार वास्तुशास्त्री किसी प्लॉट पर जाते हैं कंपास के द्वारा दिशा का निर्धारण करते हैं जिसमें ईशान कोण अग्नि कोण इत्यादि का निर्धारण ठीक से नहीं हो पाता है और घर में रहने वाले लोगों का जीवन तहस-नहस हो जाता है और बाद में शिकायत करते हैं मैं जब से इस घर में आया हमारे साथ बुरा बुरा ही हो रहा है पहले बहुत अच्छा था। ऐसा गलत तरीके से घर में दिशा निर्धारण के कारण होता है।
वास्तु के लिए कलर का भी है महत्व
वास्तु शास्त्र शास्त्र में कलर का भी अध्ययन किया जाता है जिसका अर्थ होता है कौन सी दिशा में कौन सा कलर उसके लिए उपयुक्त होगा, पूर्व दिशा के लिए सुनहरा पीला और नारंगी रंग उपयुक्त होता है उत्तर दिशा के लिए हरा रंग। रंगों से भी घर के वास्तु को ठीक किया जा सकता है और घर में रहने वाले सदस्यों का जीवन मैं सुख समृद्धि की प्राप्ति के लिए उपयोग किया जा सकता है।
वास्तु शास्त्र में धार्मिक चित्र का भी बहुत महत्वपूर्ण स्थान होता है जैसे ओम्, स्वास्तिक इस सब का उपयोग करके घर में नकारात्मक ऊर्जा को घर में प्रवेश करने से रोका जाता है।
वास्तु शास्त्र में पेड़-पौधों का भी अध्ययन किया जाता है कौन सा पेड़ आवासीय घर में रखने से सुख समृद्धि बढ़ती है, घर में रहने वाले सदस्यों पर पॉजिटिव एनर्जी देती है इस सब का भी अध्ययन वास्तु शास्त्र में है । जैसे तुलसी का पौधा, गुलाब के फूल, मनी प्लांट इत्यादि।
पंडित मनोज कुमार मिश्रा, वास्तु ज्योतिष विशेषज्ञ
(डिस्क्लेमर: इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के हैं। इंडिया टीवी इसकी सत्यता की पुष्टि नहीं करता। )
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