Highlights
- माघ शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को शीतला षष्ठी के रूप में मनाया जाता है।
- इस व्रत को रखने से संतान की खुशहाली और अनंत सौभाग्य की प्राप्ति होती है
माघ शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को शीतला षष्ठी का व्रत किया जाता है। हर साल की माघ शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को शीतला षष्ठी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन शीतला माता की पूजा और व्रत आदि करके लाभ उठा सकते है। इस बार शीतला षष्ठी 6 फरवरी को पड़ रही है।
शास्त्रों के अनुसार माना जाता है कि शीतला षष्ठी के दिन व्रत रखने से संतान की खुशहाली और अनंत सौभाग्य की प्राप्ति होती है, साथ ही मन शीतल होता है। कहा जाता है जिन महिलाओं को संतान प्राप्ति कि इच्छा है उन महिलाओं को शीतला माता का व्रत अवश्य रखना चहिए।
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शीतला षष्ठी शुभ मुहूर्त
षष्ठी तिथि प्रारंम्भ: 6 फरवरी को सुबह 3 बजकर 46 मिनट से शुरू
षष्ठी तिथि समाप्त: 7 फरवरी 4 बजकर 37 मिनट तक
शीतला षष्ठी पूजा विधि
शीतला षष्ठी क दिन प्रात: सुबह उठकर सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान करें और इसके बाद व्रत का संकल्प लें। फिर चौकी में सफेद रंग का कपड़ा बिछाएं और उसमें शीतला माता की प्रतिमा या फिर चित्र स्थापित करें। इसके बाद इस मंत्र 'श्रीं शीतलायै नमः, इहागच्छ इह तिष्ठ' को बोलते हुए जल अर्पित करें। फिर हाथ में वस्त्र अथवा मौली लेकर आसन के रूप में माता को अर्पित करें। फिर चंदन और अक्षत का तिलक लगाने के साथ फूल और फूल से माला अर्पित करें। इसके बाद शीतला माता को धूप-दीप दिखाएं। भोग में जो बासी कल रात का बनाया हो उस भोजन का भोग अर्पित करें। इसके बाद शीतला षष्ठी व्रत की कथा सुनें।
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बासी भोजन से लगाया जाता है भोग
शीतला षष्ठी के दिन ठंडी या फिर कहे बांसी खाना खाने का रिवाज है। शास्त्रों के अनुसार, शीतला का मतलब ठंडा होता है और शीतला माता को ठंडी चीजों से लगाव है। इसलिए शीतला माता को खुश करने के लिए उन्हें ठंडी चीजों का भोग लगाया जाता है।
शीतला षष्ठी से एक दिन पहले पकवान बनाया जाता है और अगले दिन सुबह जल्दी उठकर शीतला मां की पूजा किया हैं और देवी मां को भी पिछले दिन का बना बांसी और ठंडा खाना भोग में चढ़ाया जाता है और घर आकर वही बांसी खाना खाया जाता है। इस दिन देवी मां को मीठे चावल, हलवा, पूड़ी, पुए और दही के बने पकवान चढ़ाने का चलन है। अगर एक दिन पहले भोग बनाना सम्भव ना हो तो सुबह जल्दी उठकर पकवान बनाकर शाम को पूजा भी किया जा सकता है।
शीतला षष्ठी व्रत कथा
प्राचीन समय की बात है। भारत के किसी गांव में एक बुढ़िया माई रहती थी। वह हर शीतला षष्ठी के दिन शीतला माता को ठंडे पकवानों का भोग लगाती थी। भोग लगाने के बाद ही वह प्रसाद ग्रहण करती थी। गांव में और कोई व्यक्ति शीतला माता का पूजन नहीं करता था। एक दिन गांव में आग लग गई। काफी देर बाद जब आग शांत हुई तो लोगों ने देखा, सबके घर जल गए लेकिन बुढ़िया माई का घर सुरक्षित है। यह देखकर सब लोग उसके घर गए और पूछने लगे, माई ये चमत्कार कैसे हुआ? सबके घर जल गए लेकिन तुम्हारा घर सुरक्षित कैसे बच गया?
बुढ़िया माई बोली, मैं बास्योड़ा के दिन शीतला माता को ठंडे पकवानों का भोग लगाती हूं और उसके बाद ही भोजन ग्रहण करती हूं। माता के प्रताप से ही मेरा घर सुरक्षित बच गया। गांव के लोग शीतला माता की यह अद्भुत कृपा देखकर चकित रह गए। बुढ़िया माई ने उन्हें बताया कि हर साल शीतला षष्ठी के दिन मां शीतला का विधिवत पूजन करना चाहिए, उन्हें ठंडे पकवानों का भोग लगाना चाहिए और पूजन के बाद प्रसाद ग्रहण करना चाहिए। पूरी बात सुनकर लोगों ने भी निश्चय किया कि वे हर शीतला षष्ठी पर मां शीतला का पूजन करेंगे, उन्हें ठंडे पकवानों का भोग लगाकर प्रसाद ग्रहण करेंगे।