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Sawan Kanwar Yatra: 14 जुलाई से शुरू होगी सावन कांवड़ यात्रा, जानिए क्या है ये और इसका इतिहास

Sawan Kanwar Yatra: आइए जानते हैं क्या होती है कांवड़ यात्रा? साथ ही जानिए क्या है इसका इतिहास?

Written by: Sushma Kumari @ISushmaPandey
Published : June 18, 2022 11:37 IST
Sawan Kanwar Yatra
Image Source : INDIA TV Sawan Kanwar Yatra

Highlights

  • महादेव का प्रिय माह सावन 14 जुलाई से शुरू होने जा रहा है।
  • सावन के इस पावन माह में शिव भक्त कांवड़ यात्रा का आयोजन करते हैं।

Sawan Kanwar Yatra: महादेव का प्रिय माह सावन 14 जुलाई से शुरू होने जा रहा है। यह महीना भगवान शिव को समर्पित है। मान्यता है कि इस महीने में भगवान शिव की पूजा अर्चना करने से शिव जी बहुत प्रसन्न होते हैं। वहीं कहा जाता है कि यदि कोई शिव भक्त सावन महीने में सच्चे मन और पूरी श्रद्धा के साथ महादेव का व्रत धारण करता है तो उसे भगवान शिव का आशीर्वाद मिलता है। 

हर साल लाखों श्रद्धालु भगवान शिव को खुश करने के लिए कांवड़ यात्रा निकालते हैं। मान्यताओं के अनुसार, ऐसा करने से भगवान शिव भक्तों की सारी मनोकामना पूरी करते हैं। ऐसे में आइए जानते हैं क्या होती है कांवड़ यात्रा? साथ ही जानिए क्या है इसका इतिहास?

जानिए क्या होती है कांवड़ यात्रा?

सावन के इस पावन माह में शिव भक्त कांवड़ यात्रा का आयोजन करते हैं। जिसमें लाखों श्रद्धालु भगवान शिव को खुश करने के लिए देवभूमि उत्तराखंड में स्थित शिवनगरी हरिद्वार और गंगोत्री धाम की यात्रा करते हैं। उसके बाद इन तीर्थ स्थलों से गंगा जल से भरी कांवड़ को अपने कंधों पर रखकर पैदल लाते हैं। फिर बाद में ये गंगा जल शिव जी को चढ़ाया जाता है। इसी यात्रा को कांवड़ यात्रा कहा जाता है। पहले समय के लोग  पैदल ही कांवड़ यात्रा करते थे। हालांकि अब लोग बाइक, ट्रक या फिर किसी दूसरे साधनों का इस्तेमाल करने लगे हैं। 

कांवड़ पौराणिक कथा

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब देवताओं और असुरों के बीच समुद्र मंथन हो रहा था तब उस मंथन से 14 रत्न निकले। उन चौदह रत्नों में से एक हलाहल विष भी था, जिससे सृष्टि नष्ट होने का भय था। उस समय संसार की रक्षा के लिए शिव जी ने उस विष को पी लिया और उसे अपने गले से नीचे नहीं उतरने दिया। 

विष के प्रभाव से महादेव का कंठ नीला पड़ गया और इसी वजह से उनका नाम नीलकंठ पड़ा। कहा जाता है कि रावण, भगवान शिव का सच्चा भक्त था। वह कांवर में गंगाजल लेकर आया और उसी जल से उसने शिवलिंग का अभिषेक किया, तब जाकर भगवान शिव को इस विष से मुक्ति मिली। 

डिस्क्लेमर - ये आर्टिकल जन सामान्य सूचनाओं और लोकोक्तियों पर आधारित है। इंडिया टीवी इसकी सत्यता की पुष्टि नहीं करता।

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