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Sawan 2022: कल से शुरू हो रहा है सावन माह, गलती से भी शिवलिंग पर न चढ़ाएं ये 7 चीजें, वरना नहीं मिलेगा पूजा का फल

Sawan 2022: कभी भी भगवान शिव को तुलसी, हल्दी, सिंदूर सहित ये 7 वस्तुएं नहीं चढ़ाना चाहिए। आइए जानते हैं।

Published : Jul 13, 2022 15:51 IST, Updated : Jul 13, 2022 18:24 IST
Sawan 2022
Image Source : INDIA TV Sawan 2022

Sawan 2022: देवो के देव महादेव कहे जाने वाले भगवान शिव का प्रिय महीना सावन कल यानि 14 जुलाई से शुरू होने वाला है।  यह महीना भगवान शिव को समर्पित है। पूरे माह शिव भक्त भोलेनाथ की विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। कहा जाता है कि इन दिनों शिवलिंग पर बेलपत्र, धतूरा, चंदन, अक्षत, शमीपत्र आदि अनेक शुभ वस्तुएं चढ़ाने से भगवान भोलेनाथ जल्दी प्रसन्न होते हैं और भक्तों की मनोकामना पूरी करते हैं। वहीं शिव पुराण के अनुसार कभी भी भगवान शिव को तुलसी, हल्दी, सिंदूर सहित ये 7 वस्तुएं नहीं चढ़ाना चाहिए। तो आइए जानते हैं। 

हल्दी

कभी भी शिवलिंग पर हल्दी नहीं चढ़ाई जाती है क्योंकि हल्दी को स्त्री से संबंधित माना गया है और शिवलिंग पुरुषत्व का प्रतीक है। ऐसे में शिव जी की पूजा में हल्दी का इस्तेमाल करने से पूजा का फल नहीं मिलता है। ऐसी भी मान्यता है कि हल्दी की तासीर गर्म होती है जिसकी वजह से शिवलिंग पर चढ़ाना वर्जित माना गया है। इसलिए शिवलिंग पर ठंडी चीजें जैसे बेलपत्र, भांग, गंगाजल, चंदन, कच्चा दूध चढ़ाया जाता है।

कुमकुम या सिंदूर
यह सौभाग्य का प्रतीक है जबकि भगवान शिव वैरागी हैं इसलिए भगवान शिव को सिंदूर चढ़ाना अशुभ माना जाता है।

टूटे हुए चावल
शास्त्रों में कहा गया है कि कभी भी भगवान भोलेनाथ को टूटे हुए चावल अर्पित नहीं किए जाते हैं क्योंकि टूटा हुआ चावल अपूर्ण और अशुद्ध होता है। 

तुलसी 
शिवपुराण के अनुसार जालंधर नाम का असुर भगवान शिव के हाथों मारा गया था। जालंधर को एक वरदान मिला हुआ था कि वह अपनी पत्नी की पवित्रता की वजह से उसे कोई भी अपराजित नहीं कर सकता है। लेकिन जालंधर को मरने के लिए भगवान विष्णु को जालंधर की पत्नी तुलसी की पवित्रता को भंग करना पड़ा। अपने पति की मौत से नाराज तुलसी ने भगवान शिव का बहिष्कार कर दिया था। इसलिए शिवजी को तुलसी  नहीं चढ़ाया जाता है। 

तिल
तिल या तिल से बनी कोई चीज भगवान शिव को नहीं चढ़ानी चाहिए क्योंकि तिल भगवान विष्णु के मैल से उत्पन्न हुआ मान जाता है।

केतकी का फूल
शिवपुराण की कथा के अनुसार केतकी के फूल एक बार ब्रह्माजी व विष्णुजी में विवाद छिड़ गया कि दोनों में श्रेष्ठ कौन है। ब्रह्माजी सृष्टि के रचयिता होने के कारण श्रेष्ठ होने का दावा कर रहे थे और भगवान विष्णु पूरी सृष्टि के पालनकर्ता के रूप में स्वयं को श्रेष्ठ कह रहे थे। तभी वहां एक विराट लिंग प्रकट हुआ। दोनों देवताओं ने सहमति से यह निश्चय किया गया कि जो इस लिंग के छोर का पहले पता लगाएगा उसे ही श्रेष्ठ माना जाएगा। अत: दोनों विपरीत दिशा में शिवलिंग की छोर ढूढंने निकले।

छोर न मिलने के कारण विष्णुजी लौट आए। ब्रह्मा जी भी सफल नहीं हुए परंतु उन्होंने आकर विष्णुजी से कहा कि वे छोर तक पहुँच गए थे। उन्होंने केतकी के फूल को इस बात का साक्षी बताया। ब्रह्मा जी के असत्य कहने पर स्वयं शिव वहाँ प्रकट हुए और उन्होंने ब्रह्माजी की एक सिर काट दिया और केतकी के फूल को श्राप दिया कि शिव जी की पूजा में कभी भी केतकी के फूलों का इस्तेमाल नहीं होगा।

शंख जल
कहा जाता है कि भगवान शिव ने शंखचूड़ नाम के असुर का वध किया था। शंख को उसी असुर का प्रतीक माना जाता है जो भगवान विष्णु का भक्त था। इसलिए विष्णु भगवान की पूजा शंख से होती है शिव की नहीं।

Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। । इंडिया टीवी एक भी बात की सत्यता का प्रमाण नहीं देता है। 

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