Highlights
- चतुर्थी तिथि का अधिष्ठाता भगवान गणेश है।
- प्रत्येक महीने के कृष्ण और शुक्ल, दोनों पक्षों की चतुर्थी को भगवान गणेश की पूजा की जाती है।
चैत्र कृष्ण पक्ष की उदया तिथि तृतीया और सोमवार का दिन है। तृतीया तिथि सुबह 8 बजकर 20 मिनट तक रहेगी। उसके बाद चतुर्थी तिथि लग जायेगी। सोमवार यानी 20 मार्च संकष्टी श्री गणेश चतुर्थी का व्रत किया जायेगा। प्रत्येक महीने के कृष्ण और शुक्ल, दोनों पक्षों की चतुर्थी को भगवान गणेश की पूजा की जाती है। हर महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी श्री गणेश चतुर्थी मनायी जाती है, जबकि हर माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को वैनायकी श्री गणेश चतुर्थी मनायी जाती है।
आचार्य इंदु प्रकाश के अनुसार चतुर्थी तिथि मंगलवार सुबह 6 बजकर 24 मिनट तक ही रहेगी। यानी कि- चतुर्थी तिथि में चंद्रमा सोमवार ही उदयमान रहेगा।
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चतुर्थी तिथि का अधिष्ठाता भगवान गणेश है। संकष्टी श्री गणेश चतुर्थी व्रत के दिन विघ्नविनाशक, संकटनाशक, प्रथम पूज्नीय श्री गणेश भगवान के लिए व्रत किया जाता है। भगवान गणेश बुद्धि, समृद्धि और सौभाग्य को देने वाले हैं। इनकी उपासना शीघ्र फलदायी मानी गयी है। यह व्रत सुबह से लेकर शाम को चन्द्रोदय निकलने तक रखा जाता है, उसके बाद व्रत का पारण कर लिया जाता है।
संकष्टी श्री गणेश चतुर्थी व्रत का शुभ मुहूर्त
- चतुर्थी तिथि प्रारंभ: सुबह 8 बजकर 21 मिनट तक
- चतुर्थी तिथि समाप्त: मंगलवार सुबह 6 बजकर 24 मिनट तक
- चन्द्रोदय: बुधवार रात 9 बजकर 19 मिनट पर होगा।
संकष्टी श्री गणेश चतुर्थी व्रत की पूजा विधि
ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सभी कामों को कर स्नान करें।
फिर गणपति का ध्यान करें।
इसके बाद एक चौकी पर साफ पीले रंग का कपड़ा बिछाएं और इसके ऊपर भगवान गणेश की मूर्ति रखें।
उसके बाद गंगा जल छिड़कर पूरे स्थान को पवित्र करें।
अब गणेश जी को फूल की मदद से जल अर्पित करें।
इसके बाद रोली, अक्षत और चांदी की वर्क लगाएं।
लाल रंग का पुष्प, जनेऊ, दूब, पान में सुपारी, लौंग, इलायची और कोई मिठाई रखकर चढ़ाएं।
इसके बाद नारियल और भोग में मोदक चढ़ाएं।
गणेश जी को दक्षिणा अर्पित कर उन्हें 21 लड्डूओं का भोग लगाएं।
सभी सामग्री चढ़ाने के बाद धूप, दीप और अगरबत्ती से भगवान गणेश की आरती करें।
इसके बाद इस मंत्र का जाप करें -
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥
या फिर
ॐ श्री गं गणपतये नम: का जाप करें।
अंत में चंद्रमा को दिए हुए मुहूर्त में अर्घ्य देकर अपने व्रत को पूर्ण करें।
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