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PM Modi In Deoghar: कहानी बाबा बैद्यनाथ की जहां पहुंचे हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रावण से है इस ज्योतिर्लिंग का कनेक्शन

PM Modi In Deoghar: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज देवघर एयरपोर्ट का शुभारंभ किया। तो चलिए आज हम आपको इस धाम से जुड़ा रोचक किस्सा बताते हैं।

Written By: Poonam Yadav
Updated on: July 12, 2022 22:34 IST
 कहानी बाबा बैजनाथ की जहां पहुंचे हैं प्रधानमंत्री - India TV Hindi
Image Source : TWITTER कहानी बाबा बैजनाथ की जहां पहुंचे हैं प्रधानमंत्री

Highlights

  • रावणेश्वर नाम के पीछे है पौराणिक कहानी
  • इस ज्योतिर्लिंग में त्रिशूल नहीं, बल्कि पंचशूल है
  • यहां सावन में जलाभिषेक का खास महत्व है

PM Modi In Deoghar: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ की पावन धरती पर पहुंचकर देवघर एयरपोर्ट का शुभारंभ किया। इस वजह से श्रद्धालु अब और भी जल्दी वहां पहुंचेंगे। साथ ही उन्होंने आज बाबा बैद्यनाथ धाम मंदिर पहुंचकर पूजा-अर्चना की। इस दौरान उन्होंने भगवान शिव का जलाभिषेक किया। उन्होंने गंगा से लाये गए जल, दूध, पंचामृत के साथ ज्योतिर्लिंग का अभिषेक किया और इसके बाद मंत्रोच्चार के बीच फूल, बेलपत्र, मदार, धतूरा अर्पित किया, फिर आरती और प्रार्थना की। आपको बता दें इस मंदिर में सबसे बड़ा श्रावणी मेला लगता है साथ ही इसका कनेक्शन रावण से भी रहा है। यही कारण है कि इस मंदिर को रावणेश्वर धाम और रावणेश्वर ज्योतिर्लिंग भी कहा जाता है। आखिर इस धाम का नाम रावणेश्वर क्यों पाड़ा आज हम आपको इस लेख के ज़रिए बताएंगे। 

सबसे बड़ा श्रावणी मेला यहीं लगता है:

देश में कुल 12 ज्योतिर्लिंग है, बैद्यनाथ धाम उनमें से एक है। बाबा बैद्यनाथ धाम को द्वादश ज्योतिर्लिंगों में नौवां ज्योतिर्लिंग माना जाता है। द्वादश ज्योतिर्लिंग में देवघर ही सिर्फ ऐसा जगह है जहां शिव और शक्ति एक साथ विराजमान हैं। यहां अपनी मनोकामना लेकर देव विदेश से तमाम शिवभक्त पहुंचते हैं। इस विश्वव्यापी आध्यात्मिक केंद्र में दुनिया का सबसे बड़ा श्रावणी मेला लगता है। 14 जुलाई से देवघर में महीने भर तक चलने वाले विश्व प्रसिद्ध श्रावणी मेले की भी शुरुआत को हो रही है। इस वर्ष एक साथ होने वाली अनेक ऐतिहासिक शुरुआतों को लेकर देवघर सहित पूरा इलाका भव्य तरीके से सजाया गया है। श्रावणी मेले को झारखंड का सबसे बड़ा सामाजिक-धार्मिक आयोजन माना जाता है, यहां हर साल सावन के महीने में देश-विदेश से तकरीबन 35 लाख से अधिक श्रद्धालु जुटते हैं।

क्यों पड़ा रावणेश्वर नाम?

शिवभक्त रावण चाहता था कि शिव कैलाश छोडक़र लंका में रहें। इसके लिए उसने कैलाश में घनघोर तपस्या की और एक-एक कर अपने सिर शिवलिंग पर चढ़ाने लगा। जैसे ही वो अपना दसवां सिर काटने गया, भगवान शिव प्रकट हो गए और उन्होंने उसे वरदान मांगने को कहा। रावण ने शिव को लंका चलने की इच्छा बताई।  शिव ने मनोकामना पूरी की, साथ ही शर्त भी रखी।  इसके अनुसार रावण को बीच में कहीं भी शिवलिंग रखना नहीं था।  लेकिन देवघर के पास आकर रावण ने शिवलिंग नीचे रखा और वो वह वहीं जम गया। इसलिए इस तीर्थ को रावणेश्वर धाम भी कहा जाता है। 

पंचशूल की मान्यताएं:

इस ज्योतिर्लिंग में त्रिशूल नहीं, बल्कि पंचशूल है। इसको लेकर अलग-अलग मान्यताएं हैं। कुछ लोगों का मानना है कि पंचशूल मानव शरीर के पांच विकार काम, लोभ, मोह को नाश करने का प्रतीक है तो कुछ लोग पंचशूल पंचतत्वों क्षिति, जल, पावक, गगन, समीर से बने मानव शरीर का द्योतक मानते हैं।  

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