Thursday, December 26, 2024
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Maha Shivratri 2022: महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव को बिल्कुल भी अर्पित न करें ये पांच चीजें, नहीं मिलेगा पूजा का फल

Maha Shivrtari 2022: फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष को महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। जानिए इस दिन शिवलिंग में कौन-कौन सी चीजें अर्पित नहीं करनी चाहिए।

Written by: India TV Lifestyle Desk
Updated : February 16, 2022 16:38 IST
Maha Shivratri 2022
Image Source : INSTAGRAM/DEVO_KE_DEV_MAHADEV_ Maha Shivratri 2022

Highlights

  • इस साल महाशिवरात्रि 1 मार्च को पड़ रहा है
  • जानिए भगवान शिव को कौन सी चीजें नहीं चढ़ानी चाहिए

हिंदू धर्म में महाशिवरात्रि का विशेष महत्व है। इस साल महाशिवरात्रि का पर्व 1 मार्च, मंगलवार को मनाया जाएगा। फाल्गुल मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि का व्रत के दिन भगवान शिव के साथ-साथ माता पार्वती की पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस दिन रुद्राभिषेक करने से भक्त की हर मनोकामना पूर्ण हो जाती है। 

महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए भांग-धतूरा, दूध, चंदन, भस्म जैसी कई चीजों को अर्पित करते हैं। लेकिन कई बार जाने-अनजाने में ऐसी चीजें भी चढ़ा देते हैं जिससे भगवान शिव क्रोधित हो जाते हैं। शिवपुराण में बताया गया है कि आखिर ऐसी कौन सी चीजें है जो शिवलिंग में नहीं चढ़ाना चाहिए। 

Maha Shivratri 2022: महाशिवरात्रि, जानिए शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

हल्दी

भगवान शिव को हल्दी नहीं चढ़ाते हैं। शास्त्रों के अनुसार शिवलिंग पुरुष तत्व का प्रतीक है और हल्दी स्त्रियों से संबंधित है। इसी कारण शिवलिंग में हल्दी चढ़ाने की मनाही है। 

सिंदूर
सिंदूर भगवान शिव को छोड़कर सभी देवी-देवताओं का प्रिय है। भगवान शिव  को इसलिए सिंदूर नहीं चढ़ाते है क्योंकि हिंदू महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए इसे लगाती है। वहीं भगवान शिव संहारक है। इसलिए भगवान शिव को सिंदूर चढ़ाने के बजाय चंदन से तिलक लगाना शुभ माना जाता है।

शंख से जल चढ़ाना
शास्त्रों के अनुसार, भगवान शिव ने शंखचूड़ नाम के असुर का वध किया था। इसलिए भगवान शिव को शंख से जल नहीं चढ़ाया जाता है। वहीं इसके उल्टे शंख असुर का प्रतीक माना जाता है जो भगवान विष्णु का भक्त था। इसलिए विष्णु भगवान की पूजा शंख से होती है। 

तुलसी
भगवान शिव को तुलसी भी अर्पित नहीं की जाती है। शिव पुराण के अनुसार, जालंधर नाम का असुर भगवान शिव के हाथों मारा गया था। जालंधर को एक वरदान मिला हुआ था कि उसे अपनी पत्नी की पवित्रता की वजह से उसे कोई भी अपराजित नहीं कर सकता है। लेकिन जालंधर को मरने के लिए भगवान विष्णु को जालंधर की पत्नी तुलसी की पवित्रता को भंग करना पड़ा। अपने पति की मौत से नाराज़ तुलसी ने भगवान शिव का बहिष्कार कर दिया था। जिस कारण तुलसी का प्रयोग शिव पूजा में नहीं किया जाता है।

केतकी का फूल
शास्त्रों के अनुसार भगवान शिव को केतकी का फूल चढ़ाने की मनाही है। इसके पीछे एक कथा है जिसके अनुसार, एक बार ब्रह्माजी और विष्णुजी में विवाद छिड़ गया कि दोनों में श्रेष्ठ कौन है। ब्रह्माजी सृष्टि के रचयिता होने के कारण श्रेष्ठ होने का दावा कर रहे थे और भगवान विष्णु पूरी सृष्टि के पालनकर्ता के रूप में स्वयं को श्रेष्ठ कह रहे थे। तभी वहां एक विराट लिंग प्रकट हुआ। दोनों देवताओं ने सहमति से यह निश्चय किया गया कि जो इस लिंग के छोर का पहले पता लगाएगा उसे ही श्रेष्ठ माना जाएगा। अत: दोनों विपरीत दिशा में शिवलिंग की छोर ढूढंने निकले। छोर न मिलने के कारण विष्णुजी लौट आए। ब्रह्मा जी भी सफल नहीं हुए परंतु उन्होंने आकर विष्णुजी से कहा कि वे छोर तक पहुंच गए थे। उन्होंने केतकी के फूल को इस बात का साक्षी बताया। ब्रह्मा जी के असत्य कहने पर स्वयं शिव वहां प्रकट हुए और उन्होंने ब्रह्माजी की एक सिर काट दिया और केतकी के फूल को श्राप दिया कि शिव जी की पूजा में कभी भी केतकी के फूलों का इस्तेमाल नहीं होगा। 

Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं। इंडिया टीवी  इनकी पुष्टि नहीं करता है। 

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