Thursday, November 07, 2024
Advertisement
  1. Hindi News
  2. लाइफस्टाइल
  3. जीवन मंत्र
  4. जीवन कष्टमय कर देता है काल सर्प दोष, जानिए कितनी तरह के हैं कालसर्प योग और उपाय

जीवन कष्टमय कर देता है काल सर्प दोष, जानिए कितनी तरह के हैं कालसर्प योग और उपाय

कुंडली में काल सर्प दोष होना किसी  भी जातक के लिए परेशानी की बात हो सकती है। इस योग में जीवन कष्टमय होता है जानिए इसके बारे में। 

Edited by: India TV Lifestyle Desk
Published on: April 27, 2022 16:40 IST
kaal sarp dosh- India TV Hindi
Image Source : TWITTER/@OURBHAKTI kaal sarp dosh

सनातन धर्म में किसी व्यक्ति की कुडंली देखकर ग्रहों का आकलन किया जाता है औऱ जातक की जिंदगी में दोष और योग की गणना की जाती है। कुंडली में कालसर्प दोष होने पर विवाह, संतान, सम्मान, पैसा, बिजनेस आदि संबधी कई समस्याओं की आशंका बनती है।

क्या है काल सर्प योग (what is kaal sarp dosh) किसी जातक की कुंडली में जब राहु एवं केतु सदा वक्री (उल्टी चाल) रहते हैं और बाकी के सभी ग्रह राहु एवं केतु के बीच में आ जाते हैं तो व्यक्ति कालसर्प  दोष से पीड़ित माना जाता है। हर राशि की कुंडली में काल सर्प दोष का प्रभाव अलग अलग तरीके से पड़ता है। 

काल सर्प योग के 12 प्रकार होते है। हर दोष का अलग-अलग प्रभाव और इससे राहत  पाने के लिए विशेष ज्योतिषीय उपाय होते है। इन उपायों को अपनाकर काल सर्प दोष का प्रभाव कम किया जा सकता है।

चलिए पहले जानते हैं 12 तरह के काल सर्प दोषों के बारे में -

अनंत कालसर्प दोष

कुंडली में राहु लग्न में हो और केतु सप्तम भाव में स्थित हो तथा सभी अन्य ग्रह सप्तम से द्वादश, एकादशी, दशम, नवम, अष्टम और सप्तम में स्थित हो तो यह अनंत कालसर्प योग कहलाता है। ऐसे जातकों के व्यक्तित्व निर्माण में कठिन परिश्रम की जरूरत पड़ती है। उसके विद्यार्जन व व्यवसाय के काम बहुत सामान्य ढंग से चलते हैं और इन क्षेत्रों में थोड़ा भी आगे बढ़ने के लिए जातक को कठिन संघर्ष करना पड़ता है।

कुलिक कालसर्प दोष
राहु द्वितीय भाव में तथा केतु अष्टम भाव में हो और सभी ग्रह इन दोनों ग्रहों के बीच में हो तो कुलिक नाम कालसर्प योग होगा।  हु दूसरे घर में हो और केतु अष्टम स्थान में हो और सभी ग्रह इन दोनों ग्रहों के बीच में हो तो कुलिक नाम कालसर्प योग होगा। जातक को अपयश का भी भागी बनना पड़ता है। इस योग की वजह से जातक की पढ़ाई-लिखाई सामान्य गति से चलती है और उसका वैवाहिक जीवन भी सामान्य रहता है। लेकिन आर्थिक परेशानियों के कारण आपके दापत्यं जीवन में खलबली मची रहती है।

शेषनाग कालसर्प दोष
कुंडली में राहु द्वादश स्थान में तथा केतु छठे स्थान में हो तथा शेष 7 ग्रह नक्षत्र चतुर्थ तृतीय और प्रथम स्थान में हो तो शेषनाग कालसर्प दोष का निर्माण होता है। शेषनाग कालसर्प योग बनता है। शास्त्रों के अनुासर व्यवहार में लोग इस योग संबंधी बाधाओं से पीड़ित अवश्य देखे जाते हैं। इस योग से पीड़ित जातकों की मनोकामनाएं हमेशा विलंब से ही पूरी होती हैं। ऐसे जातकों को अपनी रोजी-रोटी कमाने के लिए अपने जन्मस्थान से दूर जाना पड़ता है और शत्रु षड़यंत्रों से उसे हमेशा वाद-विवाद व मुकदमे बाजी में फंसे रहना पड़ता है। 

विषधर कालसर्प दोष
केतु पंचम और राहु ग्यारहवे भाव में हो तो विषधर कालसर्प योग बनाते हैं। इस दोष के चलते व्यक्ति धन की हानि से गुजरता है। जातक को ज्ञानार्जन करने में आंशिक व्यवधान उपस्थित होता है। उच्च शिक्षा प्राप्त करने में थोड़ी बहुत बाधा आती है एवं स्मरण शक्ति का हमेशा ह्रास होता है। जातक को नाना-नानी, दादा-दादी से लाभ की संभावना होते हुए भी आंशिक नुकसान उठाना पड़ता है। चाचा, चचेरे भाइयों से कभी-कभी झगड़ा- झंझट भी हो जाता है। बड़े भाई से विवाद होने की प्रबल संभावना रहती है।

वासुकी कालसर्प दोष
राहु तृतीय भाव में स्थित है तथा केतु नवम भाव में स्थित होकर जिस योग का निर्माण करते हैं तो वह दोष वासुकी कालसर्प दोष कहलाता है। वह भाई-बहनों से भी परेशान रहता है। अन्य पारिवारिक सदस्यों से भी आपसी खींचतान बनी रहती है। रिश्तेदार एवं मित्रगण आपको हमेशा धोखा देते रहते हैं। घर में हमेशा कलह रहता है। साथ ही आर्थिक स्थिति भी असामान्य रहती है। अर्थोपार्जन के लिए जातक को विशेष संघर्ष करना पड़ता है।

शंखपाल कालसर्प दोष
राहु चतुर्थ भाव में तथा केतु दशम भाव में स्थित होकर अन्‍य ग्रहों के साथ जो निर्माण करते हैं तो वह कालसर्प दोष शंखपाल के नाम से जाना जाता है। इससे घर- संपत्ति संबंधी थोड़ी बहुत कठिनाइयां आती हैं। जिसके कारण जातक को कभी-कभी तनाव में आ जाता है। जातक को माता से कोई, न कोई किसी न किसी समय आंशिक रूप में तकलीफ मिलती है। चंद्रमा के पीड़ित होने के कारण जातक समय-समय पर मानसिक संतुलन खोया रहता है।

पद्य कालसर्प दोष
चतुर्थ स्‍थान पर दिए दोष के ऊपर का है पद्य कालसर्प दोष इसमें राहु पंचम भाव में तथा केतु एकादश भाव में साथ में एकादशी पंचांग 8 भाव में स्थित हो तथा इस बीच सारे ग्रह हों तो पद्म कालसर्प योग बनता है। ज्ञान प्राप्त करने पर थोड़ी समस्या उच्पन्न होती है। साथ ही जातक को संतान प्राय: विलंब से प्राप्त होती है, या संतान होने में आंशिक रूप से व्यवधान उपस्थित होता है। जातक को पुत्र संतान की प्राय: चिंता बनी रहती है। साथ ही स्वास्थ्य संबंधी समस्या भी हो सकती है।

महापद्म कालसर्प दोष
राहु छठे भाव में और केतु बारहवे भाव में और इसके बीच सारे ग्रह अवस्थित हों तो महापद्म कालसर्प योग बनता है। इस योग में जातक शत्रु विजेता होता है, विदेशों से व्यापार में लाभ कमाता है लेकिन बाहर ज्यादा रहने के कारण उसके घर में शांति का अभाव रहता है। इस योग के जातक को एक ही चीज मिल सकती है धन या सुख। इस योग के कारण जातक यात्रा बहुत करता है।

तक्षक कालसर्प दोष
जन्मपत्रिका के अनुसार राहु सप्तम भाव में तथा केतु लग्न में स्थित हो तो ऐसा कालसर्प दोष तक्षक कालसर्प दोष के नाम से जाना जाता है। इस कालसर्प योग से पीड़ित जातकों को पैतृक संपत्ति का सुख नहीं मिल पाता। ऐसे जातक प्रेम प्रसंग में भी असफल होते देखे जाते हैं। गुप्त प्रसंगों में भी उन्हें धोखा खाना पड़ता है। वैवाहिक जीवन सामान्य रहते हुए भी कभी-कभी संबंध इतना तनावपूर्ण हो जाता है जिससे कि आप अलग होने की कोसिस करते है।  

कर्कोटक कालसर्प दोष
केतु दूसरे स्थान में और राहु अष्टम स्थान में कर्कोटक नाम कालसर्प योग बनता है। ऐसे जातकों के भाग्योदय में इस योग की वजह से कुछ रुकावटें अवश्य आती हैं। नौकरी मिलने व पदोन्नति होने में भी कठिनाइयां आती हैं। इस जातकों को संपत्ति भी आते-आते रह जाती है। कोई भी काम ठीक ढंग से नहीं हो पाता है। साथ ही आपको अधिक परिश्र्म करने के बाद भी लाभ नहीं मिल पाता है।

शंखचूड़ कालसर्प दोष
सर्प दोष जन्मपत्रिका में केतु तीसरे स्थान में व राहु नवम स्थान में हो तो शंखचूड़ नामक कालसर्प योग बनता है। इस योग से पीड़ित जातकों का भाग्योदय होने में अनेक प्रकार की अड़चने आती रहती हैं। व्यावसायिक प्रगति, नौकरी में प्रोन्नति तथा पढ़ाई-लिखाई में वांछित सफलता मिलने में जातकों को कई प्रकार के विघ्नों का सामना करना पड़ता है। इसके पीछे कारण वह स्वयं होता है क्योंकि वह अपनो का भी हिस्सा छिनना चाहता है। अपने जीवन में धर्म से खिलवाड़ करता है।

घातक कालसर्प दोष
कुंडली में दशम भाव में स्थित राहु और चतुर्थ भाव में स्थित केतु जब कालसर्प योग का र्निमाण करता है तो ऐसा कालसर्प दोष घातक कालसर्प दोष कहलाता है। इस योग में उत्पन्न जातक यदि मां की सेवा करे तो उत्तम घर व सुख की प्राप्ति होता है। जातक हमेशा जीवन पर्यन्त सुख के लिए प्रयत्नशील रहता है उसके पास कितना ही सुख आ जाए उसका जी नहीं भरता है।

ये तो हुई 12 प्रकार के काल सर्प दोषों की जानकारी। इनके विनाशकारी प्रभाव जातक को जीवन में तरह तरह की परेशानियों से दो चार करवाते हैं। 

लेकिन कुछ ज्योतिषीय उपाय इन काल सर्प दोष से राहत दिला सकते हैं। चलिए जानते हैं काल सर्प दोष से राहत  पाने के उपाय - 

कैसे पाएं कालसर्प दोष से निजात

  • भगवान शिव की नियमित पूजा करें। 
  • नागपंचमी पर धातु के नाग नागिन का जोड़ा मंदिर में चढ़ाएं।
  • अनामिका अंगुली में सोना, चांदी और तांबा से मिली धातु की सर्प की अंगूठी शनिवार को धारण करें।
  • चौखट पर चांदी स्वास्तिक लगाएं।
  • दाम्पत्य जीवन में ज्यादा क्लेश हो तो किसी शनिवार को दोबारा सात फेरे लगाकर शादी करें।
  • 500 ग्राम का पारद शिवलिंग बनवा कर रुद्राभिषेक कराएं। घर में मोरपंख रखें। ओम नमो वासुदेवाय मंत्र का जाप करें। एकाक्षी नारियल पर चंदन से पूजन कर के 7 बार सिर से घुमा कर प्रवाहित कर दें। सांप को सपेरे की मदद से दूध पिलाएं। नव नाग स्तोत्र का जाप करें। राहू यंत्र पास रखें या बहाएं। नाग पंचमी पर वट वृक्ष की 108 प्रदक्षिणा करें।

डिस्क्लेमर - ये आर्टिकल जन सामान्य सूचनाओं और लोकोक्तियों पर आधारित है। इंडिया टीवी इसकी सत्यता की पुष्टि नहीं करता।

Latest Lifestyle News

India TV पर हिंदी में ब्रेकिंग न्यूज़ Hindi News देश-विदेश की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट और स्‍पेशल स्‍टोरी पढ़ें और अपने आप को रखें अप-टू-डेट। Religion News in Hindi के लिए क्लिक करें लाइफस्टाइल सेक्‍शन

Advertisement
Advertisement
Advertisement