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Ganga Dussehra 2022: कब है गंगा दशहरा, जानिए शुभ मुहूर्त और इस दिन का खास महत्व

Ganga Dussehra 2022: इस बार गंगा दशहरा 9 जून को मनाया जाता रहा है। ऐसी मान्यता है कि आज के ही दिन मां गंगा धरती पर आई थीं।

Written by: Himanshu Tiwari
Published on: May 20, 2022 8:14 IST
Ganga Dussehra 2022- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV Ganga Dussehra 2022

Highlights

  • गंगा नदी के धरती पर अवतरण को लेकर इस दिन का खास महत्व है
  • मान्यता है कि गंगा नदी इसी दिन धरती पर आई थीं

Ganga Dussehra 2022: इस साल गंगा दशहरा 9 जून, गुरुवार को मनाया जा रहा है। हर साल ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की दशमी को गंगा दशहरा मनाया जाता है। इस त्योहार कई खास महत्व होते हैं। सभी पापों को हरने वाली मां गंगा इसी दिन धरती पर आई थीं। साथ ही धन-धान्य प्राप्ति के लिए इस दिन खास पूजा अर्चना भी की जाती है। 

गंगा दशहरा स्नान का शुभ मुहूर्त

शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि हस्त नक्षत्र में पड़ रही है और इस दिन व्यतिपात योग भी है.

  • 9 जून को प्रातः 8:21 से प्रारंभ
  • 10 जून को 7 बजकर 25 मिनट तक

गंगा दशहरा का महत्व
पुराणों के अनुसार भागीरथ की तपस्या के बाद जब गंगा माता धरती पर आती हैं उस दिन ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की  दशमी थी। गंगा माता के धरती पर अवतरण के दिन को ही गंगा दशहरा के नाम से पूजा जाना जाने लगा। इस दिन गंगा नदी में खड़े होकर जो गंगा स्तोत्र पढ़ता है वह अपने सभी पापों से मुक्ति पाता है। स्कंद पुराण में दशहरा नाम का गंगा स्तोत्र दिया हुआ है।

अगर आप गंगा नदी नहीं जा पा रहे है तो आप घर के पास किसी नदी या तालाब में गंगा मां का ध्यान करते हुए स्नान कर सकता है। गंगा जी का ध्यान करते हुए षोडशोपचार से पूजन करना चाहिए। इसके बाद इस मंत्र का जाप करना चाहिए।

''ऊं नम: शिवायै नारायण्यै दशहरायै गंगायै नम:''
इस मंत्र के बाद “ऊं नमो भगवते ऎं ह्रीं श्रीं हिलि हिलि मिलि मिलि गंगे मां पावय पावय स्वाहा”

मंत्र को पांच पुष्प अर्पित करते हुए गंगा को धरती पर लाने भागीरथी का नाम मंत्र से पूजन करना चाहिए। इसके साथ ही गंगा के उत्पत्ति स्थल को भी स्मरण करना चाहिए। गंगा जी की पूजा में सभी वस्तुएं दस प्रकार की होनी चाहिए। जैसे दस प्रकार के फूल, दस गंध, दस दीपक, दस प्रकार का नैवेद्य, दस पान के पत्ते, दस प्रकार के फल होने चाहिए।

अगर आप पूजन के बाद दान देना चाहते है तो दस चीजें का ही दान दें, क्योंकि ये अच्छा माना जाता है, लेकिन जौ और तिल का दान सोलह मुठ्ठी का होना चाहिए। दक्षिणा भी दस ब्राह्मणों को देनी चाहिए। जब गंगा नदी में स्नान करें तब बी दस बार डुबकी लगानी चाहिए।

गंगा जी की कथा
प्राचीन काल में अयोध्या के राजा सागर थे। महाराजा सगर के साठ हजार पुत्र थे। एक बार सगर महाराज ने अश्वमेध यज्ञ करने की सोची और अश्वमेध यज्ञ के घोडे को छोड़ दिया। राजा इन्द्र यह यज्ञ असफल करना चाहते थे और उन्होंने अश्वमेध का घोड़ा महर्षि कपिल के आश्रम में छिपा दिया।

राजा सगर के साठ हजार पुत्र इस घोड़े को ढूंढते हुए आश्रम में पहुंचे और घोड़े को देखते ही चोर-चोर चिल्लाने लगे। इससे महर्षि कपिल की तपस्या भंग हो गई और जैसे ही उन्होंने अपने नेत्र खोले राजा सगर के साठ हजार पुत्रों में से एक भी जीवित नहीं बचा। सभी जलकर भस्म हो गए।

राजा सगर, उनके बाद अंशुमान और फिर महाराज दिलीप तीनों ने मृत आत्माओं की मुक्ति के लिए घोर तपस्या की ताकि वह गंगा को धरती पर ला सकें किन्तु सफल नहीं हो पाए और अपने प्राण त्याग दिए। गंगा को इसलिए लाना पड़ रहा था क्योंकि पृथ्वी का सारा जल अगस्त्य ऋषि पी गये थे और पूर्वजों की शांति तथा तर्पण के लिए कोई नदी नहीं बची थी।

महाराज दिलीप के पुत्र भगीरथ हुए उन्होंने गंगा को धरती पर लाने के लिए घोर तपस्या की और एक दिन ब्रह्मा जी उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर प्रकट हुए और भगीरथ को वर मांगने के लिए कहा तब भागीरथ ने गंगा जी को अपने साथ धरती पर ले जाने की बात कही जिससे वह अपने साठ हजार पूर्वजों की मुक्ति कर सकें। ब्रह्मा जी ने कहा कि मैं गंगा को तुम्हारे साथ भेज तो दूंगा लेकिन उसके अति तीव्र वेग को सहन करेगा? इसके लिए तुम्हें भगवान शिव की शरण लेनी चाहिए वही तुम्हारी मदद करेगें।

अब भगीरथ भगवान शिव की तपस्या एक टांग पर खड़े होकर करते हैं। भगवान शिव भगीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर गंगा जी को अपनी जटाओं में रोकने को तैयार हो जाते हैं। गंगा को अपनी जटाओं में रोककर एक जटा को पृथ्वी की ओर छोड देते हैं। इस प्रकार से गंगा के पानी से भगीरथ अपने पूर्वजों को मुक्ति दिलाने में सफल होता है।

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