Highlights
- फाल्गुन कृष्ण पक्ष की अमावस्या को फाल्गुनी अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है।
- अमावस्या के दिन काफी खास संयोग बन रहा है।
फाल्गुन कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि और बुधवार का दिन है। फाल्गुन मास की स्नान-दान-श्राद्धादि की अमावस्या है,और स्नान- दान का अधिक महत्व सुबह सूर्योदय के समय होता है | इसलिए इस दिन कई तीर्थस्थलों पर लोग स्नान-दान कर रहे होंगे।
हिंदी सम्वत का आखिरी महीना फाल्गुन कृष्ण पक्ष की अमावस्या को फाल्गुनी अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है। शास्त्रों में फाल्गुन मास में आने वाली इस अमावस्या को अत्यंत महत्वपूर्ण बताया गया है। क्योंकि इससे ठीक एक दिन पहले देवों के देव महादेव का पावन पर्व महाशिवरात्रि मनाई जाती है। इसके साथ इतना पवित्र और शुभ दिन जुड़ा होने से गंगा स्नान और दान-पुण्य करना शुभफल देने वाला होता है।
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फाल्गुन मास की अमावस्या को प्रयागराज के संगम पर स्नान-दान करने का भी अत्यधिक महत्व होता है। फाल्गुन अमावस्या के दिन कई धार्मिक तीर्थों पर बड़े-बड़े मेलों का आयोजन भी किया जाता है।
अमावस्या तिथि का मुहूर्त
अमावस्या तिथि 2 मार्च तड़के 1 बजे से शुरू होकर रात 11 बजकर 4 मिनट तक रहेगी। उसके बाद फाल्गुन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि लग जाएगी।
अमावस्या तिथि पर बन रहा खास संयोग
आचार्य इंदु प्रकाश के अनुसार, अमावस्या के दिन काफी खास संयोग बन रहा है। इसके साथ ही सुबह 8 बजकर 21 मिनट तक शिव योग रहेगा | उसके बाद सिद्ध योग लग जाएगा। शिव योग की बात करें तो शिव योग में किय गये सभी कार्यों में विशेषकर कि मंत्र प्रयोग में सफलता मिलती है। वहीं अगर सिद्ध योग की बात करें तो इस योग में किसी भी प्रकार की सिद्धि प्राप्त करने, प्रभु का नाम जपने के लिए यह योग बहुत उत्तम है । इस योग में जो कार्य भी शुरू किया जाएगा वह सिद्ध होगा अर्थात सफल होगा।
फाल्गुन अमावस्या पूजा विधि
फाल्गुन अमावस्या पर पितरों का तर्पण करने का विधान
- अमावस्या के दिन पितरों के निमित दान-पुण्य का भी बहुत अधिक महत्व है। इस दिन तांबे के लौटे में जल भरकर, उसमें गंगाजल, कच्चा दूध, तिल, जौ, दूब, शहद और फूल डालकर पितरों का तर्पण करना चाहिए। तर्पण करते समय दक्षिण दिशा की तरफ मुख करके हाथ में तिल और दूर्वा लेकर अंगूठे की ओर जलांजलि देते हुए पितरों को जल अर्पित करें।
- पितृ दोष से मुक्ति के लिए और अपने पितरों का आशीर्वाद पाने के लिए इस दिन दूध, चावल की खीर बनाकर, गोबर के उपले या कंडे की कोर जलाकर, उस पर पितरों के निमित्त खीर का भोग लगाना चाहिए। भोग लगाने के बाद थोड़ा-सा पानी लेकर अपने दायें हाथ की तरफ, यानी भोग की बाईं साइड में छोड़ दें ।
- अगर आप दूध-चावल की खीर नहीं बना सकते तो इस दिन घर में जो भी शुद्ध ताजा खाना बना है और उससे ही पितरों को भोग लगा दें ।
- एक लोटे में जल भरकर, उसमें गंगाजल, थोड़ा-सा दूध, चावल के दाने और तिल डालकर दक्षिण दिशा की तरफ मुख करके पितरों का तर्पण करना चाहिए।