आचार्य चाणक्य ने अपने नीति शास्त्र के जरिए जीवन से जुड़ी समस्याओं का समाधान बताया है। चाणक्य ने मनुष्य को प्रभावित करने वाले सभी विषयों को बहुत ही गहराई से अध्ययन किया था। आचार्य चाणक्य की अर्थनीति, कूटनीति और राजनीति विश्व विख्यात है, जो हर एक को प्रेरणा देने वाली है। आचार्य चाणक्य की नीतियां और विचार भले ही आपको थोड़े कठोर लगे लेकिन ये कठोरता ही जीवन की सच्चाई है। हम लोग भागदौड़ भरी जिंदगी में इन विचारों को भरे ही नजरअंदाज कर दें लेकिन ये वचन जीवन की हर कसौटी पर आपकी मदद करेंगे। आचार्य चाणक्य के इन्हीं विचारों में से आज हम एक और विचार का विश्लेषण करेंगे। आज का ये विचार जुए की लत पर आधारित है।
"जुए में लिप्त रहने वाले के कार्य पूरे नहीं होते हैं।" आचार्य चाणक्य
आचार्य चाणक्य के इस कथन का मतलब है कि जो मनुष्य जुए में लिप्त रहता है उसके कोई भी कार्य पूरे नहीं होते। यानी कि ये लत खाई के समान है। जिस तरह खाई को भरने की मनुष्य कितनी भी कोशिश क्यों न कर लें लेकिन उसे भर पाना मनुष्य के हाथ से बाहर है। ठीक उसी तरह जुए में लिप्त मनुष्य अपने किसी भी कार्य को पूरा नहीं कर पाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि जुए की लत भी उसी खाई के समान है जिसमें जितनी भी चीजें क्यों न डाल दें उसे भरा नहीं जा सकता।
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जुए की लत में अगर किसी को भी लग जाए तो उससे पीछा छुड़वाना मुश्किल है। जिस तरह से जोंक शरीर में चिपककर सारा खून चूस लेती है ठीक उसी तरह जुए की लत मनुष्य का सारा पैसा इसी में खर्च करवा देती है। ऐसे में मनुष्य कितना भी क्यों न कमाकर घर लाए वो हमेशा कंगाल ही रहेगा। इस लत की वजह से मनुष्य न केवल आर्थिक रूप से कंगाल होता है बल्कि उसके अपने रिश्ते भी दांव पर लग जाते हैं।
कई बार तो ऐसा होता है कि मनुष्य इस लत की गिरफ्त में आकर अपना सब कुछ दांव पर लगा देता है। आखिर में जब उसके हाथ कुछ नहीं लगता तो वो राजा से रंक भी हो सकता है। ऐसे व्यक्ति का दिमाग भी हमेशा जुए की लत में सराबोर होता है। वो हमेशा यही सोचता रहता है कि शायद इस बार पैसा लगाने से उसे फायदा होगा। कई बार उसे थोड़ा मुनाफा भी होता है। इसी मुनाफे की लत की चपेट में आकर वो न केवल अपना वर्तमान दांव पर लगा देता है बल्कि भविष्य भी अंधकार में कर देता है। इसी वजह से आचार्य चाणक्य ने कहा है कि जुए में लिप्त रहने वाले के कार्य पूरे नहीं होते हैं।