आचार्य चाणक्य की नीतियां और विचार भले ही आपको थोड़े कठोर लगे लेकिन ये कठोरता ही जीवन की सच्चाई है। हम लोग भागदौड़ भरी जिंदगी में इन विचारों को भले ही नजरअंदाज कर दें लेकिन ये वचन जीवन की हर कसौटी पर आपकी मदद करेंगे। आचार्य चाणक्य के इन्हीं विचारों में से आज हम एक और विचार का विश्लेषण करेंगे। आज के विचार में आचार्य चाणक्य ने विनाश का जिक्र किया है।
आचार्य चाणक्य ने अपनी नीतियों में उन लोगों के बारे में जो गलत बर्ताव करते हैं। ऐसे लोगों का हमेशा विनाश होता है।
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श्लोक
असन्तुष्टा द्विजा नष्टाः सन्तुष्टाश्च महीभृतः ।
सलज्जा गणिका नष्टा निर्लज्जाश्च कुलाङ्गना ॥
असंतुष्ट ब्राह्मण, संतुष्ट राजा, कठोर आचरण करने वाली गृहिणी ये सभी लोग विनाश को प्राप्त होते है
आचार्य चाणक्य ने अपनी नीतियों में बताया है कि कैसे आपका बर्ताव आपको विनाश की ओर ले जा सकता है।
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असंतुष्ठ ब्राह्मण
आचार्य चाणक्य के अनुसार, ब्राह्मण ने अपने ज्ञान के द्वारा ही समाज में उच्च स्थान पाया हुआ है। वह अपने शास्त्रों के ज्ञान से ही लोगों का उपकार करते हैं और वहीं हर व्यक्ति पुण्य कमाने के लिए ब्राह्मण को दान देने के साथ सम्मान देते हैं। लेकिन अगर ब्राह्मण व्यक्ति द्वारा किए गए दान से संतुष्ट होकर अधिक की मांग करता है तो आज नहीं तो कल उसका विनाश जरूर लिखा है।
संतुष्ठ राजा
एक राजा को कभी भी संतुष्ठ नहीं होना चाहिए। क्योंकि अगर राजा संतुष्ठ हो गया तो आने वाले समय में वह न तो अपने राज्य को बढ़ा पाएगा और न ही प्रजा का ठीक ढंग से ध्यान रख पाता है जिसके कारण आने वाले समय में उस राज्य का नाश जरूर होता है।
कठोर आचरण करने वाली गृहणी
गृहणी घर की लक्ष्मी मानी जाती है। वह घर के साथ-साथ परिवार की देखभाल के साथ पूरे कुल के मान-सम्मान का ख्याल रखती हैं। आचार्य चाणक्य के अनुसार अगर वहीं गृहणी कठोर हो जाए तो घर में रोजाना कलह होना शुरू हो जाएगी। कलह के कारण आने वाले समय में धनहानि, बिजनेस में नुकसान के साथ कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है।