Chanakya Niti: आचार्य चाणक्य की नीतियां भले ही आपको सही न लगे लेकिन उनके द्वारा बताई गई हर एक बातें जीवन में किसी न किसी तरीके से सच्चाई जरूरी दिखाती हैं। भागदौड़ भरी जिदंगी में आप उनके विचारों को अनदेखा ही क्यों न कर दें लेकिन अगर उन्हें ध्यान में रखा जाए तो यह जरूर आपको हर कसौटी में खरे उतारेंगे। आचार्य चाणक्य के इन्हीं विचारों में से आज हम एक और विचार का विश्लेषण करेंगे। आज के विचार में आचार्य चाणक्य ने ऐसे व्यक्तियों के बारे में बताया है जो हमेशा असलफल होने के साथ-साथ दुखी रहते हैं।
श्लोक (तेरहवां अध्याय)
अनागतविधाता च प्रत्युत्पन्नमतिस्तथा ।
द्वावेतौ सुखमेधेते यद्भविष्यो विनश्यति ॥
आचार्य चाणक्य अपने इस तेरहवां अध्याय श्लोक के जरिए कहना चाहता है कि जो भविष्य के लिए तैयार है और जो किसी भी परिस्थिति को चतुराई से निपटता है, ये दोनों व्यक्ति सुखी है। लेकिन जो आदमी सिर्फ नसीब के सहारे चलता है वह बर्बाद होता है।
दरअसल, चाणक्य जी ने इस श्लोक में कहा है जो व्यक्ति किसी भी आने वाली विपत्ति को चतुराई से निपटता और जो आने वाले भविष्य के लिए तैयार रहता है वही व्यक्ति सुखी रहता है। वहीं इसके विपरीत जो व्यक्ति ये सोचकर बैठा रहता है कि जो नसीब में लिखा है वह तो होगा ही तो ऐसा व्यक्ति जरूर बर्बाद हो जाता है और अंत में उसे दुख ही प्राप्त होता है।
डिस्क्लेमर - ये आर्टिकल जन सामान्य सूचनाओं और लोकोक्तियों पर आधारित है। इंडिया टीवी इसकी सत्यता की पुष्टि नहीं करता।
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