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Baisakhi 2022: क्यों मनाई जाती है बैसाखी? पांडवों से भी है इस दिन का कनेक्शन

उत्तर भारत में और खासकर पंजाब और हरियाणा में बैसाखी पर काफी अच्छी रौनक देखने को मिलती है। इस दिन लोग ढोल नगाड़ों की थाप पर डांस करते हैं और इस उत्सव का आनंद उठाते हैं। बैसाखी

Written by: India TV Lifestyle Desk
Published : April 14, 2022 11:59 IST
Baisakhi 2022
Image Source : FREEPIK Baisakhi 2022

Highlights

  • बैसाखी का पर्व मनाने की पीछे कई कहानियां हैं।
  • हरियाणा और पंजाब सहित कई जगहों पर ये त्यौहार इस बार 14 अप्रैल को मनाया जा रहा है।
  • आज से सोलर नववर्ष का प्रारंभ भी होता है।

बैसाखी को किसानों का पर्व भी कहा जाता है, अप्रैल में हर साल ये 13 या 14 तारीख को मनाया जाता है। हरियाणा और पंजाब सहित कई जगहों पर ये त्यौहार इस बार 14 अप्रैल को मनाया जा रहा है। वैसे तो इसका पंजाब में खास महत्व है लेकिन इसे सिर्फ सिखों के नए पर्व के रूप में ही नहीं बल्कि अन्य कारणों से भी सेलिब्रेट किया जाता है। इस दिन मेष संक्रांति होती है, यानी कि सूर्यदेव मीन राशि से मेष राशि में जाते हैं। आज से सोलर नववर्ष का प्रारंभ भी होता है। इसी दिन अंतिम गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंथ की स्‍थापना की थी। इस वक्त पंजाब में रबी की फसलकर पककर तैयार हो जाती है। इसलिए वहां पर बैसाखी को कृषि पर्व के रूप में भी मनाया जाता है।

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बैसाखी का पर्व कैसे करते हैं सेलिब्रेट

उत्तर भारत में और खासकर पंजाब और हरियाणा में बैसाखी पर काफी अच्छी रौनक देखने को मिलती है। इस दिन लोग ढोल नगाड़ों की थाप पर डांस करते हैं और इस उत्सव का आनंद उठाते हैं। बैसाखी का नाम विशाखा नक्षत्र से लिया गया है। इस समय आकाश में विशाखा नक्षत्र होता है। इस दिन लोग पवित्र नदियों में स्नान करते हैं और गुरुद्वारे में अरदास केलिए पहुंचते हैं। लोग घरों की सफाई करते हैं और घरों को रंगोली और लाइट्स से सजाया जाता है। घरों में अच्छे पकवान बनते हैं और लोग मेले में जाते हैं।

बैसाखी का पर्व मनाने की पीछे कई कहानियां हैं। इसे फसलों से भी जोड़ा जाता है और महाभारत के पांडवों से भी। आइए हम आपको इस पर्व के पीछे की वजहें बताते हैं।

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महाभरत से बैसाखी के पर्व का संबंध

पौरााणिक मान्यताओं के अनुसार जब पांडव वनवास काट रहे थे उस दौरान यात्रा करते करते वो पंजाब के कटराज ताल पहुंचे। यहां पहुंचते ही सभी को प्यास लगी और बड़े भाई युधिष्ठिर को छोड़कर सभी भाईयों ने उस सरोवर का पानी पी लिया और सभी की मृत्यु हो गई। जब काफी देर तक भाई नहीं आए तो युधिष्ठिर उन्हें ढूंढ़ने पहुंचे। उनकी नजर सरोवर पर पड़ी तो वो भी पानी पीने के लिए आगे बढ़ें, लेकिन भाईयों को मृत देखकर वो रुक गए। तभी वहां यक्ष प्रकट हुए और उन्होंने बताया कि मना करने के बाद भी आपके भाईयों ने यहां का पानी पी लिया, अब अगर आप अपने भाईयों को वापस जीवित चाहते हैं तो आपके मेरे कुछ सवालों के जवाब देने होंगे। 

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युधिष्ठिर ने यक्ष के सभी प्रश्नों का बुद्धिमानी से सही जवाब दिया, उनकी प्रतिभा से प्रभावित यक्ष ने एक और परीक्षा लेनी चाही और कहा कि सिर्फ एक ही भाई वो जीवित कर सकते हैं। ऐसे मे युधिष्ठिर ने अपने सौतेले भाई का नाम लिया। युधिष्ठिर से यक्ष और भी प्रभावित हो गए और चारों भाईयों को जीवनदान दिया। मान्यता है कि तभी से बैसाखी पर्व की उत्पत्ति हुई। आज भी पंजाब के इस कटराज ताल के पास बैसाखी पर बड़े मेले का आयोजन किया जाता है।

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