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ऐसे करें भगवान सूर्य की पूजा और जानें इसका महत्व और पौराणिक कथाएं

नई दिल्ली: छठ के पर्व में मुख्य रूप से सूर्य उपासना का विधान होता है। इस दिन प्रात:काल में सूर्य की पहली किरण और सायंकाल में सूर्य की अंतिम किरण को अर्ध्य देकर पूजा की

India TV Lifestyle Desk
Updated on: November 16, 2015 17:36 IST

india TVछठ पूजा करने से संतानों की लंबी आयु के साथ-साथ निसंतान को जल्द ही संतान की प्राप्ति होती है। इस बारें में श्रीमद्द भागवत पुराण में बताया गया है। इसके अनुसार एक राजा था जिसका नाम स्वायम्भुव मनु था। उनका एक पुत्र प्रियव्रत था। जो एक राजा था, लेकिन अधिक समय बीत जाने के बाद भी उनको कोई संतान उत्पन्न नहीं हुई। तब महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराकर उनकी पत्नी को प्रसाद दिया, जिसके प्रभाव से रानी का गर्भ तो ठहर गया, किंतु मरा हुआ पुत्र उत्पन्न हुआ।

राजा प्रियवत उस मरे हुए पुत्र को लेकर श्मशान गए। पुत्र वियोग में प्रियवत ने भी प्राण त्यागने का प्रयास किया। ठीक उसी समय मणि के समान विमान पर षष्ठी देवी वहां आ पहुंची। राजा ने उन्हें देखकर अपने मृत पुत्र को जमीन में रख दिया और माता से हाथ जोड़कर पूछा कि हे सुव्रते! आप कौन हैं?

तब देवी ने कहा कि मै षष्ठी माता हूं। साथ ही इतना कहते ही देवी षष्ठी ने उस बालक को उठा लिया और खेल-खेल में उस बालक को जीवित कर दिया। जिसके बाद माता ने कहा कि तुम मेरी पूजा करो और सभी लोगों से कहो कि करें जिससे प्रसन्न होकर तुम्हारे पुत्र की आयु लंबी होगी साथ ही वो यश को प्राप्त करेगा। जिसके बाद राजा ने घर जाकर बड़े उत्साह से नियमानुसार षष्ठी देवी की पूजा संपन्न की। जिस दिन यह घटना हुई और राजा ने वो पूजा की उस दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को की गई थी। जिसके कारण तब से षष्ठी देवी यानी की छठ देवी का व्रत का प्रारम्भ हुआ।

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