सभी धर्मों में तरह-तरह के रीतिरिवाज, परंपराएं और मान्यताएं होती हैं। हिन्दू धर्म में भी शादी-ब्याह, जन्म, मृत्यु, नामकरण जैसे मौक़े पर कुछ परंपराएं होती हैं जिनका पालन किया जाता है। ऐसी ही एक परंपरा मुंडन की यानी सिर के सारे बाल कचवाने की। हिन्दू धर्म में मुंडन करना एक महत्वपूर्ण परंपरा है जो सदियों से चली आर ही है। तिरुपति और वाराणसी जैसे पवित्र स्थानों में मुंडन करवाना बहुत शुभ माना जाता है।
बालों को ग़ुरूर का चिन माना जाता है जिससे भगवान के आगे दान कर देते हैं। लोग अपने बाल अपनी मन्नत पूरी हो जाने पर भी दान करते हैं।
यहां हम आपको बताने जा रहे हैं मुंडन क्यों करवाया जाता है।
बाल अहंकार का प्रतीक है
हिंदू धर्म में जन्म और पुनर्जन्म पर विस्वास किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि बच्चे के मुंडन से बाद वह अपनी पुरानी ज़िन्दगी के बंधनों से मुक्त हो जाता है। बालों को गर्व और अहंकार का चिन्ह माना जाता है। यही वजह है मुंडन करवाकर हम अपना अहंकार त्याग कर अपने आपको भगवान को समर्पित कर देते हैं। माना जाता है कि मुंडन कराने से बुरे विचार ख़त्म हो जाते हैं।
मन्नत पूरी होने पर भी होता है मुंडन
मन्नत पूरी होने पर लोग मुंडन करवाते हैं। मन्नत पूरी हो जाने के बाद लोग अपने बाल भगवान को अर्पित करते हैं। यह परंपरा का चलन तिरुपति और वाराणसी में बहुत है।
दाह संस्कार के बाद मुंडन
मृत्यु के बाद पार्थिव शरीर के दाह संस्कार के बाद मुंडन करवाया जाता है। इसके पीछे कारण यह है कि जब पार्थिव देह को जलाया जाता है तो उसमें से भी कुछ हानीकारक जीवाणु हमारे शरीर पर चिपक जाते हैं। नदी में स्नान और धूप में बैठने का भी इसीलिए महत्व है। सिर में चिपके इन जीवाणुओं को पूरी तरह निकालने के लिए ही मुंडन कराया जाता है।