इस तरह सबसे पहले हलाहल विष निकला जिसे शिव ने अपने कंठ में रखा और नीलकंठ कहलाएं । इसके बाद क्रमश: कामधेनु, घोड़ा, ऐरावत हाथी निकलें। हजारों साल चलें इस मंथन में आखिरकार एक दिन महालक्ष्मी निकली । जिस दिन महालक्ष्मी निकली उस दिन कार्तिक कृष्ण पक्ष की आमावस्या थी। उनके रूप को देखकर उनका नाम समुदतया रखा गया। भगवान विष्णु लक्ष्मी को पाकर फिर से बलशाली हो गए और उन्हें अपने वक्षस्थल में धारण कर लिया।
जिस समय माता लक्ष्मी का समुद्र मंथन से आगमन हो रहा था उस समय सभी देवता हाथ जोड़कर आराधना, स्त्रोत का पाठ कर रहे थे। इसके साथ ही भगवान वुष्णु भी हाथ जोड़कर उनका आराधना कर रहे थे। इसके कारण कार्तिक आमावस्या के दिन महालक्ष्मी की पूजा की जाती है। हर जगह उजाला किया जाता है।
महालक्ष्मी के साथ गणेश जी और सरस्वती जी की पूजा का मतलब है कि हम भी केवल लक्ष्मी के मय में कोई गलत काम न कर दें। इसलिए हमें बुद्धि और ज्ञान देने के लिए इन दोनों की पूजा की जाती है।
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