माना जाता है तभी से इस व्रत को रख जाता है। इसके अनुसार जब अर्जुन नीलगिरी की पहाड़ियों में घोर तपस्या लिए गए हुए थे तो बाकी चारों पांडवों को पीछे से अनेक गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था। द्रौपदी ने श्रीकृष्ण से मिलकर अपना दुख बताया और अपने पतियों के मान-सम्मान की रक्षा के लिए कोई उपाय पूछा। श्रीकृष्ण भगवान ने द्रोपदी को करवाचौथ व्रत रखने की सलाह दी थी, जिसे करने से अर्जुन भी सकुशल लौट आए और बाकी पांडवों के सम्मान की भी रक्षा हो सकी थी।
इसके अलावा एक और पौराणिक कथा प्रचलित है इसके अनुसार एक किवदंति ने बताया कि सावित्री के पति सत्यवान की आत्मा को लेने के लिए जब यमराज आए तो पतिव्रता सावित्री ने उनसे अपने पति सत्यवान के प्राणों की भीख मांगी और अपने सुहाग को न ले जाने के लिए निवेदन किया। यमराज के न मानने पर सावित्री ने अन्न-जल का त्याग दिया। वो अपने पति के शरीर के पास विलाप करने लगीं। पतिव्रता स्त्री के इस विलाप से यमराज विचलित हो गए, उन्होंने सावित्री से कहा कि अपने पति सत्यवान के जीवन के अतिरिक्त कोई और वर मांग लो।
तब सावित्री ने यमराज से कहा कि आप मुझे कई संतानों की मां बनने का वर दें, जिसे यमराज ने हां कह दिया। पतिव्रता स्त्री होने के नाते सत्यवान के अतिरिक्त किसी अन्य पुरुष के बारे में सोचना भी सावित्री के लिए संभव नहीं था। तब यमराज के हा करने से सावित्री ने कहा कि मैं इनके बिना किसी पुरूष को देख भी नही सकती तो मां कैसे बन पाऊगी। यह बात सुनकर यमराज अपनी ही वरदान में उलझ गए। जिसके कारण अंत में एक पतिव्रता स्त्री के सुहाग को यमराज लेकर नहीं जा सके और सत्यवान के जीवन को सावित्री को सौंप दिया। इसी लिए माना जाता है कि यमराज से अपने पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखती है। जिसमें वह अन्न-सज सब त्याग देती है। जिसे करवा चौथ के नाम से जाना जाता है।
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