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नारी के बारे में क्या कहता है इस्लाम

अक्सर देखा गया है कि पुरुष प्रदान समाज में नारी की हमेशा उपेक्षा होती रही है, उनके साथ हर युग में सौतेला व्यवहार किया गया है। अगर धर्म की बात करें तो वहां भी उनका

India TV Lifestyle Desk
Published on: February 02, 2016 12:40 IST
muslim woman- India TV Hindi
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अक्सर देखा गया है कि पुरुष प्रदान समाज में नारी की हमेशा उपेक्षा होती रही है, उनके साथ हर युग में सौतेला व्यवहार किया गया है। अगर धर्म की बात करें तो वहां भी उनका महत्व पुरुष से कम ही होता है। इस्लाम धर्म को भी लेकर लोगों की ये धारणा है कि वहां नारी की बहुत उपेक्षा होती है, मुसलमान एक से ज़ाया शादियां करते हैं और नारी को मात्र भोग की वस्तु समझा जाता है। उन्हें कोई अधिकार प्राप्त नहीं हैं। लेकिन सच्चाई इससे एकदम अलग है। ये सही है कि लोग इस्लाम की ग़लत व्याख्या करके इसका फ़ायदा उठाते हैं लेकिन इस्लाम में नारी को हव्वा की बेटी को सम्मान के योग्य समझा गया है और उसको मर्द के समान ही अधिकार दिए गए हैं।

इस्लाम में महिलाओं का स्थान

इस्लाम में महिलाओं को बहुत ऊंचा स्थान दिया गया है और उन्हें  जीवन के हर भाग में महत्व दिया गया है। माँ, पत्नी, बेटी, बहन, विधवा और चाची-मौसी के रूप में भी उसे सम्मान दिया गया है।

माँ के रूप में सम्मान

क़ुरआन में साफ कहा गया है कि माँ के प्रति कृतज्ञ होने का मतलब है मेरे (ख़ुदा) के प्रति कृतज्ञ होना। क़ुरआन में लिखा है-“हमने मनुष्य को उसके अपने माँ-बाप के मामले में ताकीद की है – उसकी माँ ने निढाल होकर उसे पेट में रखा और दो वर्ष उसके दूध छूटने में लगे – मेरे प्रति कृतज्ञ हो और अपने माँ-बाप के प्रति भी क्योंकि अंततः तुम्हें मेरी ओर ही आना है।”

कुरआन ने यह भी कहा गया है – “माँ-बाप के साथ अच्छा व्यवहार करो। अगर उनमें से कोई एक या दोनों ही तुम्हारे सामने बूढ़े हो जाते हैं तो उन्हें ‘उँह’ तक न कहो और न उन्हें झिड़को, बल्कि उनसे शिष्टा्पूर्वक बात करो और उनके आगे दयालुता से नम्रता की भुजाएँ फ़ैलाए रखो और कहो, “मेरे रब! जिस प्रकार उन्होंने बालकाल में मुझे पाला है, तू भी उनपर दया कर।”

इस बारे में पैग़बर मुहम्मद एक वाक़्या सुनाते हैं। एक व्यक्ति उनके पास आया और पूछा कि मेरे अच्छे व्यवहार का सब से ज़्यादा अधिकारी कौन है?

पैगॉबर ने फरमायाः तुम्हारी माता...।
उसने पूछाः फिर कौन ?
कहाः तुम्हारी माता...।
पूछाः फिर कौन ?
कहाः तुम्हारी माता...।
पूछाः फिर कौन ?
कहाः तुम्हारे पिता ।
यानी मां को पिता की तुलना में तीन गुना अधिक अधिकार प्राप्त है।

हदीस में लिखा है कि माता पिता की अवज्ञा का मतलब अल्लाह की अवज्ञा है।

पत्नी की क्या व्याख्या करता है क़ुरआन, जानें अगली स्लाइड में

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