शाम के समय जब सब भाई खानें को बैठे तो वीरवती से कहा कि तुम भी आकर भोजन कर लो, लेकिन उसने कहा कि मैं भोजन नही कर सकती हूं। जब तक कि चांद नही निकल आएगा और मैं अर्घ्य दे दूगी। इसके बाद ही भोजन ग्रहण करुगी।
भाईयों से यह देखा न गया कि उसकी बहन चंद्रमा के निकलने तक भुखी रहें, तो भाइयों नें चांद निकलने से पहले एक पेड़ की ओट में छलनी के पीछे दीप रखकर बहन से कहने लगे कि देखो चांद निकल आया है। बहन ने अपने भाभियों से कहा कि देखों चांद निकल आया है। इस बात में वह बोली कि चांद नही निकला है। तुम भुखी हो। जिसके कारण तुम्हारें भाईयों ने झूठा चांद दिखा रहे है, लेकिन वीरवती ने इस बात को नही मानी और उसने झूठा चांद देखकर व्रत खोल लिया। वीरवती का ऐसा करने से करवामाता क्रोधित हो गई। जिससे वीरवती के पति की मृत्यु हो गई।
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वीरवती को जब पति की मृत्यु की सूचना मिली तो वह व्याकुल हो उठी। वीरवती को पता चला कि उसके भाइयों ने जिसे चांद कहकर व्रत खोलवा था वह चांद नहीं छलनी में चमकता दीप था।
असली चांद को देखे बिना व्रत खोलने के कारण ही उसके पति की मृत्यु हुई है। वीरवति ने अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने दिया बल्कि उसके शव को सुरक्षित अपने पास रखा और अगले साल जब करवाचौथ के दिन आया तो उसने नियम पूर्वक व्रत रखा जिससे करवामाता प्रसन्न हुई। वीरवती का मृत पति को फिर से कर दिया और वह जीवित हो उठा।
इसी कथा के कारण छलनी की परंपरा शुरू हुई। साथ ही इस कथा से हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि कोई छल से उनका व्रत तोड़ न दे, इसलिए स्वयं छलनी अपने हाथ में रखकर उगते हुए चांद को देखने की परंपरा शुरू हुई। करवा चौथ में छलनी लेकर चांद को देखना यह भी सिखाता है कि पतिव्रत का पालन करते हुए किसी प्रकार का छल उसे प्रतिव्रता से डिगा नही सकेगा।
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