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19 फरवरी को विजया एकादशी व्रत, जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत कथा

फाल्गुन कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को विजया एकादशी का व्रत करने का विधान है। हर एकादशी में भगवान विष्णु की पूजा का विधान है। जानें विजया एकादशी की पूजा विधि, शुभ मुहूर्त।

Written by: India TV Lifestyle Desk
Updated : February 18, 2020 14:38 IST
Vijaya ekadashi
Vijaya ekadashi

फाल्गुन कृष्ण पक्ष की उदया तिथि एकादशी और बुधवार का दिन है। फाल्गुन कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को विजया एकादशी का व्रत करने का विधान है और फाल्गुन कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि है | लिहाजा आज विजया एकादशी मनायी जाएगी |  साल में कुल 24 एकादशियां होती हैं, यानी एक महीने में दो, लेकिन अधिकमास पड़ने पर इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है । हर महीने के कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली इन एकादशियों का नाम भी अलग-अलग रखे गये हैं और इनसे मिलने वाले फल भी अलग-अलग होते हैं । फाल्गुन कृष्ण पक्ष की एकादशी विजय दिलाने वाली होती है ।

विजया एकादशी के दिन व्रत करने से व्यक्ति को हर क्षेत्र में विजय मिलती है, लिहाजा उसे कभी भी हार का सामना नहीं करना पड़ता है । प्रत्येक एकादशी में भगवान विष्णु की पूजा का विधान है । अतः इस दिन एकादशी का व्रत और भगवान की पूजा से कैसे आप जीवन के हर क्षेत्र में विजय पा सकते हैं, अपने शत्रुओं को परास्त कर सकते हैं और अपने आने वाले जीवन को खुशहाल बना सकते हैं।  हर एकादशी में भगवान विष्णु की पूजा का विधान है। जानें विजया एकादशी की पूजा विधि, शुभ मुहूर्त।

एकादशी शुभ मुहूर्त

आचार्य इंदु प्रकाश के अनुसार एकादशी तिथि 18 फरवरी को दोपहर 2 बजकर 33 मिनट से शुरू होगी जो 19 फरवरी की दोपहर 3 बजकर 3 मिनट तक रहेगी | उसके बाद द्वादशी तिथि लग जाएगी। इस कारण व्रत बुधवार के दिन रखा जाएगा। इसके साथ ही गुरुवार को सुबह के समय पारण किया जाएगा।

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पारण का शुभ मुहूर्त
गुरुवार को सुबह 06 बजकर 56 मिनट से 09 बजकर 11 मिनट तक है।

विजया एकादशी पूजा विधि
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, विजया एकादशी के दिन व्रत करने वाले मनुष्य को ब्रह्म मुहूर्त में स्नान आदि से निवृत होकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए। इसके पश्चात विष्णु भगवान और मां लक्ष्मी की मूर्ति पर गंगाजल से छिड़काव करें, फिर रोली और चावल का तिलक लगाकर, आरती करें। ध्यान रहें कि लक्ष्मी पूजन के दौरान घी का दीपक ही जलाएं। पूजा करने के पश्चात अपने रोजाना के कार्य करें। विजया एकादशी के दिन व्रतधारी पूरे दिन मन ही मन भगवान का ध्यान करें और शाम में आरती के बाद फलाहार कर सकते हैं।

एकादशियों का माहात्म्य सुनने में अर्जुन को अपार हर्ष की अनुभूति हो रही थी। जया एकादशी की कथा का श्रवण रस पाने के बाद अर्जुन ने कहा- "हे पुण्डरीकाक्ष! फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या नाम है तथा उसके व्रत का क्या विधान है? कृपा करके मुझे इसके सम्बंध में भी विस्तारपूर्वक बताएं।"

श्रीकृष्ण ने कहा- "हे अर्जुन! फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम विजया है। इसके व्रत के प्रभाव से मनुष्य को विजयश्री मिलती है। इस विजया एकादशी के माहात्म्य के श्रवण व पठन से सभी पापों का अंत हो जाता है।

एक बार देवर्षि नारद ने जगत पिता ब्रह्माजी से कहा- 'हे ब्रह्माजी! आप मुझे फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की विजया एकादशी का व्रत तथा उसकी विधि बताने की कृपा करें।'

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नारद की बात सुन ब्रह्माजी ने कहा- 'हे पुत्र! विजया एकादशी का उपवास पूर्व के पाप तथा वर्तमानके पापों को नष्ट करने वाला है। इस एकादशी का विधान मैंने आज तक किसी से नहीं कहा परंतु तुम्हें बताता हूँ, यह उपवास करने वाले सभी मनुष्यों को विजय प्रदान करती है।

अब श्रद्धापूर्वक कथा का श्रवण करो- त्रेता युग में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचंद्र जी को जब चौदह वर्ष का वनवास हो गया, तब वे लक्ष्मण और सीता जी सहित पंचवटी में निवास करने लगे। वहां पर दुष्ट रावण ने जब सीताजी का हरण किया तब इस समाचार से रामचंद्र जी और लक्ष्मण अत्यंत व्याकुल हुए और सीताजी की खोज में चल दिए।

घूमते-घूमते जब वे मरणासन्न जटायु के पास पहुंचे तब वह उन्हें सीता जी का वृत्तांत सुनाकर स्वर्गलोक चला गया। कुछ आगे जाकर उनकी सुग्रीव से मित्रता हुई और बाली का वध किया। हनुमान जी ने लंका में जाकर सीता जी का पता लगाया और उनसे श्री रामचंद्र जी और सुग्रीव की मित्रता का वर्णन किया। वहां से लौटकर हनुमान जी ने भगवान राम के पास आकर सब समाचार कहे।

श्री रामचंद्र जी ने वानर सेना सहित सुग्रीव की सम्पत्ति से लंका को प्रस्थान किया। जब श्री रामचंद्र जी समुद्र से किनारे पहुंचे तब उन्होंने मगरमच्छ आदि से युक्त उस अगाध समुद्र को देखकर लक्ष्मण जी से कहा कि इस समुद्र को हम किस प्रकार से पार करेंगे। श्री लक्ष्मण ने कहा, "हे पुराण पुरुषोत्तम, आप आदिपुरुष हैं, सब कुछ जानते हैं। यहां से आधा योजन दूर पर कुमारी द्वीप में वकदालभ्य नाम के मुनि रहते हैं। उन्होंने अनेक ब्रह्मा देखे हैं, आप उनके पास जाकर इसका उपाय पूछिए।" 

लक्ष्मण जी के इस प्रकार के वचन सुनकर श्री रामचंद्र जी वकदालभ्य ऋषि के पास गए और उनको प्रणाम करके बैठ गए। मुनि ने भी उनको मनुष्य रूप धारण किए हुए पुराण पुरुषोत्तम समझकर उनसे पूछा, "हे राम! आपका आना कैसे हुआ?" रामचंद्र जी कहने लगे, "हे ऋषे! मैं अपनी सेना सहित यहां आया हूँ और राक्षसों को जीतने के लिए लंका जा रहा हूं। आप कृपा करके समुद्र पार करने का कोई उपाय बतलाइए। मैं इसी कारण आपके पास आया हूं।"

वकदालभ्य ऋषि बोले, "हे राम! फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का उत्तम व्रत करने से निश्चय ही आपकी विजय होगी, साथ ही आप समुद्र भी अवश्य पार कर लेंगे।"

उन्‍होंने कहा, "इस व्रत की विधि यह है कि दशमी के दिन स्वर्ण, चाँदी, तांबा या मिट्‍टी का एक घड़ा बनाएं। उस घड़े को जल से भरकर तथा पांच पल्लव रख वेदिका पर स्थापित करें। उस घड़े के नीचे सतनजा और ऊपर जौ रखें। उस पर श्रीनारायण भगवान की स्वर्ण की मूर्ति स्थापित करें। एका‍दशी के दिन स्नानादि से निवृत्त होकर धूप, दीप, नैवेद्य, नारियल आदि से भगवान की पूजा करें। तत्पश्चात घड़े के सामने बैठकर दिन व्यतीत करें और रात्रि को भी उसी प्रकार बैठे रहकर जागरण करें। द्वादशी के दिन नित्य नियम से निवृत्त होकर उस घड़े को ब्राह्मण को दे दें। हे राम! यदि तुम भी इस व्रत को सेनापतियों सहित करोगे तो तुम्हारी विजय अवश्य होगी।" 

श्री रामचंद्र जी ने ऋषि के कथनानुसार इस व्रत को किया और इसके प्रभाव से दैत्यों पर विजय पाई।

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