धर्म डेस्क: हिन्दू धर्म में वट सावित्री व्रत को करवा चौथ के तरह ही माना जाता है। ग्रंथ स्कन्द व भविष्य पुराण में वट सावित्री के बारे में बताय़ा गया है जिसके अनुसार यह व्रत ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को किया जाता है, लेकिन निर्णयामृतादि के अनुसार यह व्रत ज्येष्ठ मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को करने का विधान है। यह व्रत अपने पति के दीर्घायु के लिए रखा जाता है। इस बार ये व्रत 4 जून, शनिवार के दिन है।
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शुभ मुहूर्त
ज्योतिषचार्यों के अनुसार चतुर्दशी शुक्रवार दिन के 11:30 बजे बाद प्रवेश कर जायेगा. ऐसे में शनिवार को भी वट पूजा का प्रावधान है, लेकिन बाबाधाम में उदया सिद्धांत पर तिथि मानी जाती है। इसके तहत जिस तिथि को सूर्य का उदय होता है। जिसके बाद शनिवार को इस व्रत को रखा जाएगा। जानिए इसकी पूजा विधि के बारें में।
पूजन विधि
वट सावित्री व्रत के दिन सभी कामों से मुक्त होकर अपने जल को गंगाजल से पवित्र करना चाहिए। इसके बाद सोलह श्रृंगार करके महिलाएं बांस की टोकरी में सप्त धान्य भरकर ब्रह्माजी की प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए। ब्रह्माजी के बाईं ओर सावित्री तथा दूसरी ओर सत्यवान की मूर्ति स्थापित करनी चाहिए।
इसके बाद टोकरी को वट वृक्ष के नीचे ले जाकर रख देना चाहिए। इसके बाद सावित्री व सत्यवान का पूजन कर, वट वृक्ष की जड़ में जल अर्पण करना चाहिए। पूजन के समय जल, मौली, रोली, सूत, धूप, चने का इस्तेमाल करना चाहिए। सूत के धागे को वट वृक्ष पर लपेटकर तीन बार परिक्रमा कर सावित्री व सत्यवान की कथा सुने। पूजन समाप्त होने के बाद वस्त्र, फल आदि का बांस के पत्तों में रखकर दान करना चाहिए और चने का प्रसाद बांटना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि वट पूजा कर ही सावित्री ने अपने मृत पति सत्यवान का जीवन दान लेकर आयी है। वह जीवित हो गये थे। इसके बाद से ही यह पर्व मनाने की परंपरा शुरू हुई है।