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Varuthini ekadashi 2019: सौभाग्य से पूर्ण है वरुथिनी एकादशी, जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत कथा

ह इस माह वरुथिनी एकादशी है जिसके बारे में माना जाता है कि सीधे मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस बार वरुथिनी एकादशी 30 अप्रैल, मंगलवार को है। जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत कथा। 

Written by: India TV Lifestyle Desk
Published on: April 29, 2019 18:58 IST
Varuthini ekadashi 2019- India TV Hindi
Varuthini ekadashi 2019

धर्म डेस्क: हिंदू धर्म में एकादशी का बहुत अधिक महत्व है। शास्त्रों के के अनुसार माना जाता है कि इस दिन व्रत करने से कई गुना अधिक फल मिलता है। इसी तरह इस माह वरुथिनी एकादशी है जिसके बारे में माना जाता है कि सीधे मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस बार वरुथिनी एकादशी 30 अप्रैल, मंगलवार को है।

पद्मपुराण के अनुसार इस एकादशी के बारे में श्री कृष्ण ने कहा है कि इस व्रत को करने से लोक और परलोक में सौभाग्य की प्राप्ति होती है। साथ ही सभी प्रकार के पापों का नाश होता है। साथ ही माना जाता है कि इस व्रत को करने से आपको 10 हजार सालों की तपस्या के बराबर फल मिलता है।

हिंदू धर्म के शास्त्रों के अनुसार जो इंसान विधि-विधान से एकादशी का व्रत और रात्रि जागरण करता है उसे वर्षों तक तपस्या करने का पुण्य प्राप्त होता है। इसलिए इस व्रत को जरुर करना चाहिए। इस व्रत से कई पीढियों द्वारा किए गए पाप भी दूर हो जाते है।

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इस एकादशी के दिन जो व्यक्ति व्रत रखता है। वह इस दिन प्रात: स्नान करके भगवान को स्मरण करते हुए विधि के साथ पूजा करें और उनकी आरती करनी चाहिए साथ ही उन्हें भोग लगाना चाहिए। इस दिन भगवान नारायण की पूजा का विशेष महत्व होता है। साथ ही ब्राह्मणों तथा गरीबों को भोजन या फिर दान देना चाहिए। यह व्रत बहुत ही फलदायी होता है। इस व्रत को करने से समस्त कामों में आपको सफलता मिलती है। जानिए इसकी पूजा-विधि, और कथा के बारे में।

वरुथिनी एकादशी शुभ मुहूर्त

एकादशी तिथि प्रारंभ: रात 11 बजकर 4 मिनट से

पारण का समय(1 मई): सुबह 6 बजकर 44 मिनट से 8 बजकर 22 मिनट
पारण के दिन द्वादशी तिथि समाप्त (1 मई): 6 बजकर 44 मिनट
एकादशी समाप्त: 1 मई दोपहर 12 बजकर 18 मिनट।

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वरुथिनी एकादशी व्रत पूजा विधि
इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर भगवान का मनन करते हुए सबसे पहले व्रत का संकल्प करें। इसके बाद सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान करें। इसके बाद पूजा स्थल में जाकर भगवान श्री कृष्ण की पूजा विधि-विधान से करें। इसके लिए धूप, दीप, नैवेद्य आदि सोलह चीजों से करने के साथ रात को दीपदान करें। इस दिन रात को सोए नहीं।

सारी रात जगकर भगवान का भजन-कीर्तन करें। इसी साथ भगवान से किसी प्रकार हुआ गलती के लिए क्षमा भी मांगे। अगले दूसरे दिन यानी की 23 अप्रैल, रविवार के दिन सुबह पहले की तरह करें। इसके बाद ब्राह्मणों को ससम्मान आमंत्रित करके भोजन कराएं और अपने अनुसार उन्हे भेट और दक्षिणा दे। इसके बाद सभी को प्रसाद देने के बाद खुद भोजन करें। व्रत के दिन व्रत के सामान्य नियमों का पालन करना चाहिए। इसके साथ ही साथ जहां तक हो सके व्रत के दिन सात्विक भोजन करना चाहिए। भोजन में उसे नमक का इस्तेमाल बिल्कुल नहीं करना चाहिए। इससे आपको हजारों सालों की तपस्या के बराबर फल मिलेगा।

वरुथिनी एकादशी व्रत कथा
वरुथिनी एकादशी के संबंध में कई कथाएं प्रचलित हैं। उनमें से एक लोकप्रिय कथा राजा मांधाता की है। प्राचीन काल में नर्मदा नदी के किनारे बसे राज्य में मांधाता राज करते थे। वे जंगल में तपस्या कर रहे थे, उसी समय एक भालू आया और उनके पैर खाने लगा। मांधाता तपस्या करते रहे। उन्होंने भालू पर न तो क्रोध किया और न ही हिंसा का सहारा लिया।

पीड़ा असहनीय होने पर उन्होंने भगवान विष्णु से गुहार लगाई। भगवान विष्णु  ने वहां उपस्थित हो उनकी रक्षा की पर भालू द्वारा अपने पैर खा लिए जाने से राजा को बहुत दुख हुआ। भगवान ने उससे कहा- हे वत्स! दुखी मत हो। भालू ने जो तुम्हें काटा था, वह तुम्हारे पूर्व जन्म के बुरे कर्मो का फल था। तुम मथुरा जाओ और वहां जाकर वरुथिनी एकादशी का व्रत रखो। तुम्हारे अंग फिर से वैसे ही हो जाएंगे। राजा ने आज्ञा का पालन किया और फिर से सुंदर अंगों वाला हो गया।

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