धर्म डेस्क: श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन वरलक्ष्मी व्रत रखा जाता हैं। यह व्रत संतान की लंभी उम्र, अपने सुहाग के लिए रकती हैं। इस बार ये व्रत 12 अगस्त, शुक्रवार को हैं। हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार वरलक्ष्मी व्रत को वरों का त्यौहार कहा गया है।
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वरलक्ष्मी व्रत शादीशुदा महिलाओं द्वारा अपने पति की मंगल कामना और लम्बी आयु के लिए मनाया जाता है। मान्यताओं के अनुसार यह व्रत शादीशुदा जोड़ों को संतान प्राप्ति का सुख भी देता है। वरलक्ष्मी व्रत रखना अष्टलक्ष्मी को पूजने के बराबर है। इस दिन पूजा करने से धन, प्रसिद्धि, ज्ञान, बल, आनंद, प्रेम, शांति की कबी कमी नहीं होती है। जानइए इस दिन कैसे पूजा करनी चाहिए।
पूजा विधि
इस दिन प्रात: सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान करें और एक सुहागन की तरह तैयार हो जाएंष इसके बाद पूजा वाले स्थान पर रंगीली बनाएं। इसके बाद देवी लक्ष्मी की मूर्ति को नए कपड़ों, ज़ेवर और कुमकुम से सजाया जाता है। इसके बाद हल्दी, कुमकुम, फूल, फल, एक लाल रंग का कपड़ा, पान के पत्ते, नारियल, चावल, चना आदि लेकर रख लें।
सबसे पहले गणेश जी के ध्यान करें। इसके बाद देवी लक्ष्मी की मूर्ति को पूजा के स्थान पर पूर्व दिशा में रखें। पूजा के स्थान पर थोड़े चावल फैलाएं। एक कलश लें और उसके चारों तरफ चन्दन लगाएं। कलश में आधे से ज़्यादा चावल भर लें। कलश के अंदर पान के पत्ते, खजूर और सिक्का (चांदी या तांबा) डालें।
एक नारियल पर चंदन, हल्दी और कुमकुम लगा कर उसे कलश पर रखें। नारियल के आसपास आम के पत्ते लगाएं। एक थाली में नया लाल कपड़ा रखें और उस थाली को चावल पर रखें। देवी लक्ष्मी के समक्ष दीया जलाएं। पूजा समाप्त करने के बाद महिलाओं को प्रसाद बांटकर होता है। ऐसा करने से आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्म हो जाएंगी।