Wednesday, November 27, 2024
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वैकुण्ठ चतुर्दशी व्रत: इस दिन घाटों पर जलाएं जाते है 14 दीपक, जानें इसका महत्व

वैकुंठ चतुर्दशी के दिन ही व्रत कर तारों की छांव में सरोवर, नदी इत्यादि के तट पर 14 दीपक जलाने की परंपरा रही है।  जानें कैसे जलाएं इसके साथ ही जानिए इसका महत्व।

Written by: India TV Lifestyle Desk
Published on: November 20, 2018 22:38 IST
Lord Vishnu- India TV Hindi
Lord Vishnu

धर्म डेस्क: आज कार्तिक शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि और बुधवार का दिन है, लेकिन त्रयोदशी तिथि आज दोपहर 02:07 तक ही रहेगी, उसके बाद चतुर्दशी तिथि लग जायेगी और कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को वैकुण्ठ चतुर्दशी मनायी जाती है। अतः आज वैकुण्ठ चतुर्दशी व्रत है। इसे बैकुण्ठ चौदस के नाम से भी जाना जाता है। आज के दिन भगवान शिव और विष्णु जी की विधिवत रूप से पूजा-अर्चना की जाती है। साथ ही आज के दिन काशी विश्वनाथ प्रतिष्ठा दिवस है। आज के दिन नर्मदेश्वर शिवलिंग को तुलसी अर्पित की जाती है। आज के दिन वाराणसी के प्रसिद्ध मणिकर्णिका घाट पर स्नान का भी महत्व है।

आज वैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन सुबह के समय भगवान शंकर की विधि-पूर्वक पूजा करनी चाहिए। साथ ही भगवान विष्णु की पूजा भी पूरे विधि-विधान के साथ करनी चाहिए। दरअसल चातुर्मास के दौरान भगवान विष्णु अपना सारा कार्यभार भगवान शंकर को सौंपकर निद्रा में चले जाते हैं और चार महीनों के बाद वैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन निद्रा से उठते हैं और भगवान शंकर का पूजन करते हैं और भगवान शंकर फिर से उन्हें सृष्टि का सारा कार्यभार सौंप देते हैं। (21 नवंबर 2018 राशिफल: बुधवार का दिन इन राशियों के जीवन में आ सकता है बड़ा संकट, रहें सतर्क )

आज के दिन विशेष रूप से काशी में बाबा विश्वनाथ का पंचोपचार विधि से पूजन किया जाता है और उनकी महाआरती की जाती है। इसे काशी विश्वनाथ प्रतिष्ठा दिवस का नाम दिया गया है। आज के दिन तुलसी दल से नर्मदेश्वर शिवलिंग का पूजन भी किया जाता है। नर्मदा नदी से निकले शिवलिंग को नर्मदेश्वर शिवलिंग कहा जाता है। ऐसी मन्यता है कि जहां नर्मदेश्वर का वास होता है, वहां काल और यम का भय नहीं होता है। आज के दिन इनका पूजन करने से सुख- समृद्धि में बढ़ोतरी होती है, मन में सकारात्मक विचारों का समावेश होता है और जीवनसाथी के साथ आपके संबंधों में शांति और प्रेम बना रहता है। आज के दिन वाराणसी के प्रसिद्ध मणिकर्णिका घाट पर स्नान की भी परंपरा है।   (साप्ताहिक राशिफल 19 से 25 नवंबर: इन राशियों में होगा चंद्रमा का प्रवेश, पैसे के लेन-देन से पहले बरतें ये सावधानी )

ऐसे जलाएं 14 दीपक

 
वैकुंठ चतुर्दशी के दिन ही व्रत कर तारों की छांव में सरोवर, नदी इत्यादि के तट पर 14 दीपक जलाने की परंपरा रही है।  घाटों पर 14 दीपक जलाने से घर में सुख-समृद्धि की प्रप्ति होती है। इस चतुर्दशी के दिन जो मनुष्य व्रत करके श्रीहरि विष्‍णु की विधिवत पूजा करते हैं उनके लिए स्वर्ग के द्वार खुल जाते हैं। वहीं वह बैकुंठ को प्राप्त करते हैं जो स्वर्ग से भी कहीं ज्यादा महत्व रखता है।

इस कारण जलाएं जाते है 14 दीपक
एक बार श्रीहरि विष्णु देवाधिदेव महादेव का पूजन करने काशी पधारे थे। वहां विष्णु जी मणिकर्णिका घाट पर स्नान कर लगें। फिर उन्होंने 1,000 स्वर्ण कमल पुष्पों से भगवान विश्वनाथ के पूजन का संकल्प किया। परंतु जब वह पूजा करने को चले तो महादेव ने उनकी परीक्षा लेने के लिए एक पुष्प कम कर दिया।
 
यह देख श्रीहरि ने अपने नेत्रों को कमल मानकर चढ़ाने की इच्छा प्रकट की। वह ऐसा करने को ही चले कि महादेव स्वंय प्रकट हो गए। फिर महादेव बोले, हे हरि! तुम्हारे समान मेरा दूसरा कोई भक्त नहीं इसलिए आज से कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की यह चतुर्दशी अब 'बैकुंठ चतुर्दशी' कहलाएगी इसमें तुम्हारा पूजन होगा। इस दिन जो मनुष्य भक्तिपूर्वक पहले आपका पूजन करेगा, वह बैकुंठ को प्राप्त होगा। बैंकुठ को स्वर्ग लोक से भी बहुत ऊपर माना गया है।
 
इस प्रकार कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी का दिन भगवान विष्‍णु और शिव जी की एक साथ पूजा का दिन है। इस दिन श्रद्धालु दोनों भगवान का 1,000 कमल पुष्पों से पूजन करते हैं। इस तरह पूजन करने वाले समस्त भाव-बंधनों से मुक्त होकर बैकुंठ धाम को प्राप्त करते हैं। इसके अलावा बैकुंठ चतुर्दशी के दिन ही व्रत कर तारों की छांव में सरोवर, नदी इत्यादि के तट पर 14 दीपक जलाने की परंपरा रही है।

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