Highlights
- एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती हैं।
- उत्पन्ना एकादशी पर बन रहा है आयुष्मान योग
- भगवान विष्णु के शरीर से प्रकट देवी के नाम पर पड़ा उत्पन्ना एकादशी
मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की एकादशी को उत्पन्ना एकादशी के नाम से जाना जाता है। उत्पन्ना एकादशी का व्रत आज रखा जा रहा है। आचार्य इदु प्रकाश के अनुसार जो लोग साल भर तक एकादशी व्रत का अनुष्ठान करना चाहते है उन्हें मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की एकादशी से ही व्रत शुरू करना चाहिए।
कैसे एकादशी का नाम पड़ा उत्पन्ना
दरअसल एक बार मुर नामक राक्षस ने भगवान विष्णु को मारना चाहा, तभी भगवान के शरीर से एक देवी प्रकट हुईं और उन्होंने मुर नामक राक्षस का वध कर दिया। इससे प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने देवी से कहा कि- चूंकि तुम्हारा जन्म मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की एकादशी को हुआ है, इसलिए तुम्हारा नाम एकादशी होगा। आज से प्रत्येक एकादशी को मेरे साथ तुम्हारी भी पूजा होगी। आज एकादशी की उत्पत्ति होने से ही इसे उत्पन्ना एकादशी के नाम से जाना जाता है और इस दिन से एकादशी व्रत का अनुष्ठान भी किया जाता है।
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एकादशी पर बन रहे हैं खास योग
एकादशी की रात 12 बजकर 3 मिनट तक आयुष्मान योग रहेगा | भारतीय संस्कृति में किसी की लंबी आयु के लिए उसे आयुष्यमान भव: का आशीर्वाद देते हैं | इस योग में किए गए कार्य लंबे समय तक शुभ फल देते रहते हैं | इस योग में किया गया कार्य जीवन भर सुख देने वाला होता है। इसके साथ ही देर रात 2 बजकर 13 मिनट से शुरू होकर 1 दिसंबर की सूर्योदय तक द्विपुष्कर योग रहेगा| माना जाता है कि द्विपुष्कर योग में कोई भी काम करने से दो गुना फल मिलता है |
एकादशी का शुभ मुहूर्त
एकादशी प्रारम्भ- 30 नवंबर सुबह 4 बजकर 14 मिनट से शुरू
एकादशी तिथि समाप्त- 30 नवंबर रात 2 बजकर 13 मिनट तक
पारण तिथि हरि वासर समाप्ति: 1 दिसंबर सुबह 7 बजकर 34 मिनट
उत्पन्ना एकादशी पूजा विधि
पद्म पुराण के अनुसार माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु सहित देवी एकादशी की पूजा का विधान है। इसके अनुसार मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की दशमी को भोजन के बाद अच्छी तरह से दातून करना चाहिए ताकि अन्न का एक भी अंश मुंह में न रह जाए। इसके बाद दूसरे दिन यानी कि उत्पन्ना एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर व्रत का संकल्प करके स्नान करना चाहिए।
इसके बाद भगवान श्री कृष्ण की पूजा विधि-विधान से करनी चाहिए। इसके लिए धूप, दीप, नैवेद्य आदि सोलह सामग्री से पूजा करें और रात के समय दीपदान करना चाहिए। इस दिन सारी रात जगकर भगवान का भजन- कीर्तन करना चाहिए। साथ ही श्री हरि विष्णु से अनजाने में हुई भूल या पाप के लिए क्षमा भी मांगनी चाहिए। उत्पन्ना एकादशी के दूसरे दिन सुबह स्नान कर भगवान श्रीकृष्ण की पूजा कर ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए।
साथ ही अपने अनुसार उन्हें दान दे देकर सम्मान के साथ विदा करना चाहिए। इसके बाद खुद भोजन करें। पुराणों के अनुसार माना जाता है कि इस व्रत को करने से हजारों यज्ञ करने के बराबर फल मिलता है।
उत्पन्ना एकादशी की व्रत कथा
सतयुग में एक महा भयंकर दैत्य था। उसका नाम मुर था। उस दैत्य ने इन्द्र आदि देवताओं पर विजय प्राप्त कर उन्हें उनके स्थान से गिरा दिया। तब सभी शंकर जी के पास गए तो उन्होनें विष्णु भगवान के पास मदद मांगने के लिए भेज दिया। तब विष्णु ने देवताओं का मदद के लिेए अपने शरीर से एक स्त्री को उत्पन्न किया। जिसने मुर नामक राक्षस का वध किया। तब विष्णु भगवान ने प्रसन्न होकर उस स्त्री का नाम उत्पन्ना रख दिया।
इसका जन्म एकादशी में होने के कारण भगवान विष्णु ने उत्पन्ना को कहा कि आज के दिन जो भी व्यक्ति मेरी और तुम्हारी पूजा विधि-विधान और श्रृद्धा के साथ करेंगा। उसका सभी मनोकामाना पूर्ण होगी और उसे मोक्ष की प्राप्त होगी।