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जानिए प्रदोष व्रत के बारें में कुछ खास बातें

यह हिंदू धर्म के सबसे शुभ और महत्वपूर्ण धर्मों में से एक है। हिंदू चंद्र कैलेंडर के अनुसार प्रदोष व्रत चंद्र मास के 13 वें दिन (त्रयोदशी) पर रखा जाता है। जानिए इस व्रत के बारें में कुछ खास बातें।

India TV Lifestyle Desk
Updated : November 11, 2016 16:50 IST
 lord shiva
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धर्म डेस्क:  प्रदोष व्रत भगवान शंकर और माता पार्वती की पूजा के लिए विशेष तिथि है। इस तिथि में व्रत व पूजन का विशेष महत्व होता है और ऐसी माना जाता है कि जो भी व्यक्ति इस तिथि में पूजन करता है। उसको मां पार्वती व भगवान शंकर की कृपा मिलती है। इस बार शनि प्रदोष व्रत 12 नवंबर, शनिवार को है।

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इस दिन भगवान शिव की आराधना की जाती है। यह हिंदू धर्म के सबसे शुभ और महत्वपूर्ण धर्मों में से एक है। हिंदू चंद्र कैलेंडर के अनुसार प्रदोष व्रत चंद्र मास के 13 वें दिन (त्रयोदशी) पर रखा जाता है।  जानिए इस व्रत के बारें में कुछ खास बातें।

  • शास्त्रों के अनुसार माना जाता है कि इस दिन व्रत और पूजा करने से व्यक्ति के पाप धूलने के साथ-साथ मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह पूजा त्रयोदशी के दिन शाम को 4:30 से 6:00 बजें के बीच की जानी चाहिए। ऐसा माना जाता है कि यह समय भगवान शिव का आह्वान करने के लिए बहुत शुभ है।
  • ऐसी धारणा है कि प्रदोष पूजा में शामिल होने के लिए सभी देवी देवता पृथ्वी पर उतरते हैं। इसलिए भगवान शिव के लिए की जाने वाली सभी पूजाओं में से प्रदोष पूजा को सबसे शुभ माना जाता है। अपने-अपने अक्ष पर जब सूर्य व चंद्रमा एक क्षैतिज रेखा में होते हैं तब उस समय को प्रदोष कहा जाता है। इस दौरान भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए रखा गया व्रत बहुत शुभ माना जाता है।
  • प्रदोष व्रत के अलावा, शनि प्रदोष व सोमा प्रदोष व्रत भी बहुत महत्वपूर्ण व्रत हैं। किंवदंतियों के अनुसार, सागर के मंथन के दौरान नागों के राजा वासुकी को रस्सी के रुप में इस्तेमाल किया गया था। इस प्रक्रिया में, वासुकी को काफी खरोंचे आई तथा उसने इतना शक्तिशाली विष उत्सर्जित किया जोकि दुनिया को नष्ट करने के लिए पर्याप्त था। इस विष से जब सभी जीवजंतु तड़पने लगे, तब भगवान शिव उन्हें बचाने के लिए आए। प्राणियों की रक्षा करने हेतु भगवान शिव ने सारा जहर पी लिया। फिर देवी पार्वती ने उनकी चमत्कारी शक्तियों से विष को भगवान शिव के गले से नीचे नहीं उतरने दिया, जिसके कारण भगवान शिव का गला नीला पड़ गया। इसी वजह से भगवान शिव को नीलकंठ भी कहा जाता है।

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