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BLOG: ओशो एक विद्रोही संन्यासी, जानिए इनके बारें में कुछ अनजानी बातें

रजनीश जो बाद में ओशो के नाम से जाने जाते हैं वे आधुनिक भारत की सबसे चर्चित और और विवादास्पद आध्यात्मिक गुरु रहे हैं। जानइए इनके जन्म से लेकर मृत्यु के बारें में हर एक बात...

Written by: India TV Lifestyle Desk
Published : January 19, 2018 19:56 IST

osho

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ऐसे भी आरोप लगे अपने समय के सबसे बेहतरीन तर्कशास्‍त्री पर
वे केवल अमीर लोगों के समीप रहते थे, उन्होंने पूंजीवाद को भी बढ़ावा दिया। आंकड़ों के अनुसार उनके पास करीब 90 रॉल्स रॉयस गाड़ियां थीं। ओशो बेहतरीन तर्कशास्त्री थे और अपने तर्कों द्वारा सही को गलत और गलत को सही कर देते थे।
 
मप्र में जन्‍म हुआ,11 भाईयों में सबसे बड़े थे ओशो
रजनीश का जन्म 11 दिसंबर, 1931 को मध्य प्रदेश के गांव कुछवाड़ा के जैन परिवार में ओशो रजनीश का जन्म हुआ था। ग्यारह भाइयों में सबसे बड़े ओशो का पारिवारिक नाम रजनीश चंद्र मोहन था। 11 वर्ष की उम्र में रजनीश को अपने नाना के यहां भेज दिया गया। उन्होंने कभी परंपराओं को नहीं अपनाया। किशोरावस्था तक आते-आते रजनीश नास्तिक बन चुके थे। वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और राष्ट्रीय स्वयंसेवक दल में भी शामिल हुए थे।

जबलपुर विश्वविद्यालय से स्नातक (1953) और फिर सागर विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर (1957) की उपाधि ग्रहण की।उनके सार्वजनिक भाषणों का सिलसिला शुरू हुआ जो वर्ष 1951 से 1968 तक चला।

आचार्य रजनीश
1957 में संस्कृत के लेक्चरर के तौर पर रजनीश ने रायपुर विश्वविद्यालय जॉइन किया। लेकिन उनके गैर परंपरागत धारणाओं और जीवन यापन करने के तरीके को छात्रों के नैतिक आचरण के लिए घातक समझते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति ने उनका ट्रांसफर कर दिया। अगले ही वर्ष वे दर्शनशास्त्र के लेक्चरर के रूप में जबलपुर यूनिवर्सिटी में शामिल हुए। इस दौरान भारत के कोने-कोने में जाकर उन्होंने गांधीवाद और समाजवाद पर भाषण दिया, अब तक वह आचार्य रजनीश के नाम लोकप्रिय चुके थे।

जबलपुर में सबसे पहले ‘डाइनमिक मेडिटेशन’
वर्ष 1970 में रजनीश जबलपुर से मुंबई आ गए और यहां आकर उन्होंने सबसे पहली बार ‘डाइनमिक मेडिटेशन’ की शुरुआत की। उनके अनुयायी अकसर उनके घर मेडिटेशन और प्रवचन सुनने आते थे।मुंबई की जलवायु आचार्य रजनीश को रास नहीं आई और वे पुणे शिफ्ट हो गए। उनके अनुयायियों ने यहां उनके लिए आश्रम बनाया ।जहां आचार्य रजनीश 1974 से 1981 तक दीक्षा देते रहे। कुछ ही समय बाद आचार्य रजनीश के पास विदेशी अनुयायियों की भी भीड़ जमा होने लगा। वर्तमान समय में पुणे स्थित इस आश्रम को वैश्विक तौर पर ‘ओशो इंटरनेशनल मेडिटेशन सेंटर’ के नाम से जाना जाता है।

सार्वजनिक मौन
लगभग 15 वर्ष तक लगातार सार्वजनिक भाषण देने बाद आचार्य रजनीश ने वर्ष 1981 में सार्वजनिक मौन धारण कर लिया। इसके बाद उनके द्वारा रिकॉर्डेड सत्संग और किताबों से ही उनके प्रवचनों का प्रसार होता था।

अमेरिका की ओरेगन सिटी में ‘रजनीशपुरम’ की स्‍थापना की
जून, 1981 में आचार्य रजनीश अपने इलाज के लिए अमरीका गए, जहां ओरेगन सिटी में उन्होंने ‘रजनीशपुरम’ की स्थापना की। धीरे-धीरे ओशो रजनीश के फॉलोवर्स और रजनीशपुरम में रहने वाले लोगों की संख्या बढ़ने लगी, जो ओरेगन सरकार के लिए भी खतरा बनता जा रहा था।

समर्थकों की कट्टरता की वजह से अमेरिकी सरकार और ओशो रजनीश के बीच कुछ भी सामान्य नहीं था। आने वाले खतरे को भांपते हुए ओशो रजनीश ने सार्वजनिक सभाएं करना बंद कर दिया था, वे अब सिर्फ अपने आश्रम में ही प्रवचन देते और ध्यान करते थे।

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