नवीन शर्मा (पुण्यतिथि पर विशेष): रजनीश जो बाद में ओशो के नाम से जाने जाते हैं वे आधुनिक भारत की सबसे चर्चित और और विवादास्पद आध्यात्मिक गुरु रहे हैं। ओशो का महत्व इस वजह से भी है कि वो अपने प्रवचनों में किसी एक धर्म से बंधे नहीं रहते उन्हें महावीर की अहिंसा प्यारी लगती है तो दूसरी बुद्ध की करुणा भी लुभाती है। कृष्ण का इंद्रधनुषी जीवन भी आकर्षित करता है। भगवत गीता पर उनके प्रवचनों की लंबी श्रृंखला है जो किताब के रूप में उपलब्ध है। वे लगभग सभी भक्ति संतों मीरा, कबीर, दाद्दु आदि के बारे में भी काफी गहराई में अध्ययन मनन कर उनके बारे में बताते हैं।
ओशो महज अपने ही देश के आध्यात्मिक सदगुरुओं तक नहीं रुकते। वे आपको ताओ और झेन गुरु से भी रूबरू कराते हैं।
ओशो की एक बड़ी खूबी उनकी निडरता और बेबाकी है। उन्हें जो सही लगता है उसे बिना भय के कहते हैं। कौन खुश होगा और कौन नाराज इसकी तनिक भी फिक्र नहीं करते। सभी धर्मों के पाखंड और पोंगापंथी की पोल खोलते हैं।
वे भारत के पहले ऐसे आध्यात्मिक गुरु थे जिनकी विदेश में काफी पूछ थी। खासकर अमेरिका में तो उनके हजारों शिष्य बने थे।
‘ओशो’, यह शब्द लैटिन भाषा के ‘ओशनिक’ शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ है सागर में विलीन हो जाना। अपने संपूर्ण जीवन में आचार्य रजनीश ने बोल्ड शब्दों में रूढ़िवादी धर्मों की आलोचना की, जिसकी वजह से वह बहुत ही जल्दी विवादित हो गए और ताउम्र विवादित ही रहे।
संभोग से लेकर समाधि तक’ पुस्तक पर मचा जमकर विवाद
ओशो की आलोचना विभिन्न प्रकार से की जाती है, उन पर कई आरोप भी लगे। कहा जाता है कि ओशो फ्री सेक्स का समर्थन करते थे। संभोग से लेकर समाधि तक’ नामक पुस्तक ने उन्हें विवादों के चरम पर पहुंचाया।
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