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...तो इस दिन हुआ था कामदेव का पुनर्जन्म

क मान्यता के अनुसार चैत्र कृष्ण प्रतिपदा के दिन धरती पर प्रथम मानव मनु का जन्म हुआ था वहीं इसी दिन कामदेव को पुनर्जन्म मिला। हिंदू माह के अनुसार होली के दिन से ही नए संवत की शुरुआत होती है। जानिए इसक पीछे की पूरी कहानी...............

IANS
Published on: March 14, 2017 15:40 IST

kamdev

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दक्षिण भारत में इसी दिन भगवान शिव ने कामदेव को तीसरा नेत्र खोल कर भस्म किया था और उनकी राख को अपने शरीर पर मलकर नृत्य किया था। बाद में कामदेव की पत्नी रति के दुख से द्रवित होकर भगवान शिव ने कामदेव को पुनर्जीवित कर दिया, जिससे प्रसन्न होकर देवताओं ने रंगों की वर्षा की। इसी कारण होली की पूर्व संध्या पर दक्षिण भारत में अग्नि प्रज्जवलित कर उसमें गन्ना, आम की बौर और चंदन डाले जाते हैं।

यहां प्रज्ज्वलित अग्नि शिव द्वारा कामदेव का दहन, आम की बौर कामदेव के बाण, गन्ना कामदेव के धनुष और चंदन की आहुति कामदेव को आग से हुई जलन को शांत करने का प्रतीक है।

ब्रज क्षेत्र में होली त्योहार का विशेष महत्व है। फाल्गुन के महीने में रंगभरनी एकादशी से सभी मंदिरों में फाग उत्सव की शुरुआत हो जाती है, जो दौज तक चलती है। दौज को बलदेव (दाऊजी) में हुरंगा होता है। बरसाना, नंदगांव, जाव, बठैन, जतीपुरा, आन्यौर में भी होली खेली जाती है। यह ब्रज क्षेत्र का मुख्य त्योहार है।

बरसाना में लट्ठमार होली खेली जाती है। होली की शुरुआत फाल्गुन शुक्ल नवमी को बरसाना से होता है। वहां की लट्ठमार होली देश भर में प्रसिद्ध है।

पश्चिम बंगाल में होलिका दहन नहीं मनाया जाता। बंगाल को छोड़कर सभी जगह होलिका-दहन मनाने की परंपरा है। बंगाल में फाल्गुन पूर्णिमा पर 'कृष्ण-प्रतिमा का झूला' प्रचलित है लेकिन यह भारत के अधिकांश जगहों पर दिखाई नहीं पड़ता। इस त्योहार का समय अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग है।

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