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Tulsi Vivah 2020: आज तुलसी विवाह, जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और कथा

कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन तुलसी विवाह होता है। इस एकादशी को देवउठनी एकादशी कहा जाता है। जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और कथा।

Written by: India TV Lifestyle Desk
Updated : November 25, 2020 7:59 IST
Tulsi Vivah 2020: जानें कब है तुलसी विवाह, जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और कथा
Image Source : INSTAGRAM/BHANDUPCHEUTSAV Tulsi Vivah 2020: जानें कब है तुलसी विवाह, जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और कथा

कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन तुलसी विवाह होता है। इस एकादशी को देवउठनी एकादशी कहा जाता है। देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी और शालीग्राम का विवाह कराया जाता है। यह विवाह एक आम विवाह की तरह होता है जिसमें शादी की सारी रस्में निभाई जाती हैं। बारात से लेकर विदाई तक सभी रस्में होती हैं। जानिए कब है तुलसी विवाह, साथ ही जानिए पूजन विधि।

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी यानी की देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह किया जाता है। इस बार तुलसी विवाह 25 नवंबर से शुरू होकर 26 नवंबर तक होगा। 

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तुलसी विवाह की तिथि और शुभ मुहूर्त

एकादशी तिथि आरंभ: 25 नवंबर  की सुबह 2 बजकर 42  मिनट से

एकादशी तिथि समाप्त: 25 नवंबर 2019 को शाम  5 बजकर 10 मिनट तक 
द्वादशी तिथि आरंभ: 26 नवंबर सुबह 5 बजकर 10 मिनट से
द्वादशी तिथि समाप्‍त: 26 नवंबर 2019 की सुबह 7 बजकर 46 मिनट तक। 

तुलसी विवाह पूजा विधि

सबसे पहले तुलसी के पौधे को आंगन के बीचों-बीच में रखें और इसके ऊपर भव्य मंडप सजाएं। इसके बाद माता तुलसी पर सुहाग की सभी चीजें जैसे बिंदी, बिछिया,लाल चुनरी आदि चढ़ाएं। इसके बाद विष्णु स्वरुप शालिग्राम को रखें और उन पर तिल चढ़ाए क्योंकि शालिग्राम में चावल नही चढ़ाए जाते है। इसके बाद तुलसी और शालिग्राम जी पर दूध में भीगी हल्दी लगाएं। साथ ही गन्ने के मंडप पर भी हल्दी का लेप करें और उसकी पूजन करें। अगर हिंदू धर्म में विवाह के समय बोला जाने वाला मंगलाष्टक आता है तो वह अवश्य करें। इसके बाद दोनों की घी के दीपक और कपूर से आरती करें और प्रसाद चढ़ाएं।

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तुलसी विवाह की कथा

बहुत समय पहले जलंधर नामक एक राक्षस हुआ करता था। जिसने सभी जगह बहुत तबाही मचाई हुई थी। वह बहुत वीर और पराक्रमी था। उसकी वीरता का राज उसकी पत्नी वृंदा का परिव्रता धर्म था। जिसकी वजह से वह हमेशा विजयी हुआ करता था। जलंधर से परेशान देवगण भगवान विष्णु के पास गए और उनसे रक्षा की गुहार लगाई। देवगणों की प्रार्थना सुनने के बाद भगवान विष्णु ने वृंदा का पतिव्रता धर्म भंग करने का फैसला लिया। उन्होंने जलंधर का रुप धरकर छल से वृंदा को स्पर्श किया। जिससे वृंदा का पतिव्रता धर्म भंग हो गया और जंलधर का सिर उनके घर में आकर गिर गया। इससे वृंदा बहुत क्रोधित हो गई और उन्होंने भगवान विष्णु को श्राप दिया कि तुम पत्थर के बनोगे। तुमने मेरा सतीत्व भंग किया है। विष्णु भगवान का पत्थर रुप शालिग्राम कहलाया। इसके बाद विष्णु जी ने कहा- हे वृंदा मैं तुम्हारे सतीत्व का आदर करता हूं लेकिन तुलसी बनकर सदा मेरे साथ रहोगी। जो मनुष्य कार्तिक की एकादशी पर मेरा तुमसे विवाह करवाएगा उसकी सारी मनोकामना पूरी होगी।​

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