Friday, November 22, 2024
Advertisement
  1. Hindi News
  2. लाइफस्टाइल
  3. जीवन मंत्र
  4. हिंदू धर्म खास का माह भाद्रपद आज से शुरु, इस माह ये काम करना होगा शुभ साथ ही जानें व्रत-त्योहार की लिस्ट

हिंदू धर्म खास का माह भाद्रपद आज से शुरु, इस माह ये काम करना होगा शुभ साथ ही जानें व्रत-त्योहार की लिस्ट

आज से भाद्रपद महीना शुरू हो रहा है। भाद्रपद को भादो के नाम से भी जानते हैं। आज भाद्रपद महीने के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि है। आज सोमवार का दिन है। भाद्रपद चातुर्मास में आने वाला दूसरा महीना है। जानइए महत्व और इस माह के व्रत-त्योहारों के बारें में

Written by: India TV Lifestyle Desk
Published on: August 27, 2018 6:36 IST
Lord krishna- India TV Hindi
Lord krishna

धर्म डेस्क: आज से भाद्रपद महीना शुरू हो रहा है। भाद्रपद को भादो के नाम से भी जानते हैं। आज भाद्रपद महीने के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि है। आज सोमवार का दिन है। भाद्रपद चातुर्मास में आने  वाला दूसरा महीना है। आपको बता दें कि बीते जुलाई महीने की 23 तारीख को हरिशयनी एकादशी के दिन चातुर्मास की शुरुआत हुई थी। चातुर्मास चार महीनों का होते हैं। इस दौरान शादी-ब्याह आदि शुभ कार्य करना वर्जित माना जाता है। साथ ही इस दौरान कुछ खाने की चीज़ों का भी निषेध होता है।

न करें इस चीज का सेवन

चातुर्मास के पहले महीने, यानी श्रावण मास के दौरान शाक का त्याग किया जाता है। भाद्रपद मास के दौरान दही का त्याग किया जाता है। आश्विन माह के दौरान दूध का त्याग किया जाता है और कार्तिक माह के दौरान द्विदल, यानी दालों का त्याग किया जाता है। चूंकि श्रावण मास अब समाप्त हो चुका है। अतः अब आप शाक का सेवन कर सकते हैं,  लेकिन भाद्रपद शुरू होने के कारण आपको आज से लेकर 25 सितम्बर तक दही का त्याग करना चाहिए, यानी दही का सेवन नहीं करना चाहिए। हालांकि आप मट्ठा या छाछ या लस्सी का सेवन कर सकते हैं, इस पर कोई रोक नहीं है। कहते हैं इस महीने में दही का त्याग करने से व्यक्ति को पुण्य फल प्राप्त होते हैं और उसकी निरंतर तरक्की होती है। अतः कुल मिलाके आपको भादो के दौरान दही का सेवन नहीं करना चाहिए। (Kajari Teej 2018: जानें कब है कजरी तीज, इस शुभ मुहूर्त में पूजा करने से होगी पति की लंबी आयु)

जानिए आचार्य इंदु प्रकाश से भाद्रपद महीने का क्या महत्व है, इस दौरान कौन-से व्रत–त्योहार मनाये जायेंगे और उनका हमारी भारतीय संस्कृति में क्या महत्व है।

श्रीकृष्ण का प्रिय माह
जिस तरह सावन का महीना भगवान शंकर की आराधना के लिये महत्व रखता है, उसी तरह भादो का महीना भगवान श्री कृष्ण की उपासना के लिये महत्व रखता है। श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि में हुआ था, चूंकि इस बार अष्टमी 2 सितम्बर की रात 08:47 पर लगेगी और 3 तारीख की शाम 07:20 पर खत्म हो जायेगी। लिहाजा अष्टमी की रात 2 सितम्बर को ही होगी। गृहस्थों के लिये उचित है कि वो 2 सितम्बर को ही उपवास करें। यहां आपको बता दें कि मथुरा,  गोकुल और श्री कृष्ण से जुड़े बड़े-बड़े स्थल 3 तारीख को जन्माष्टमी मनायेंगे। वास्तव में ये वैष्णव संस्थान गोकुलोत्सव या नन्दोत्सव मनाते हैं, यानी नंद के घर लल्ला भयो है- जाहिर है कि 3 तारीख को लल्ला के होने की सूचना तभी दी जा सकती है, जब लल्ला 2 तारीख की रात पैदा हो चुके हों, तो फिर से याद दिला दूं कि वैष्णव मंदिर, कृष्ण से जुड़े मंदिर 3 तारीख को जन्माष्टमी मनायेंगे। गृहस्थ लोग उससे कंफ्यूजन न हो। उन्हें अपनी जन्माष्टमी का व्रत 2 तारीख को करना चाहिए और व्रत का पारण 3 तारीख को करना चाहिए। (Janmashtami 2018: इस दिन पड़ रही है जन्माष्टमी, जानें शुभ मुहूर्त और धार्मिक महत्व)

हुआ था श्रीकृष्ण का जन्म
यहां श्री कृष्ण के जन्म से जुड़ी एक खास बात और बता दूं कि श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रात में रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। अस्तु भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को कृष्ण जन्माष्टमी कहते हैं, लेकिन अगर भाद्रपद कृष्ण अष्टमी की रात रोहिणी नक्षत्र भी हो तो वह कृष्ण जयंती कहलाती है। इस बार 2 सितम्बर की रात 08 बजकर 49 मिनट से रोहिणी नक्षत्र लगेगा, जो कि 3 सितम्बर की रात 08 बजकर 05 मिनट तक रहेगा। अस्तु इस बार 2 तारीख की रात श्री कृष्ण जयंती होगी। श्रीकृष्ण जयंती कभी-कभी ही पड़ती है। वे ग्रहस्थ अत्यंत सौभाग्यशाली होंगे, जो इस साल 2 सितम्बर, जबकि अष्टमी की रात भी है, रोहिणी नक्षत्र भी है, उस दिन उपवास करेंगे। इस शुभ संयोग में कृष्ण  जन्माष्टमी का ये त्योहार अधिक आनन्दमय होगा।

28 अगस्त को, यानी कि कल अशून्य शयन द्वितिया व्रत है। अशून्य शयन द्वितिया का अर्थ है- बिस्तर में अकेले न सोना पड़े। जिस प्रकार स्त्रियां अपने जीवनसाथी की लंबी उम्र के लिये करवाचौथ का व्रत करती हैं, ठीक उसी तरह पुरूषों को अपने जीवनसाथी की लंबी उम्र के लिये ये व्रत करना चाहिए। क्योंकि जीवन में जितनी जरूरत एक स्त्री को पुरुष की होती है, उतनी ही जरूरत पुरुष को भी स्त्री की होती है। अतः कल के दिन पतियों द्वारा अपनी पत्नी के लिये व्रत करने का विधान है। आपको बता दूं ये व्रत चातुर्मास के प्रत्येक चार महीनों- श्रावण, भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक के कृष्ण पक्ष की द्वितिया को किया जाता है।

कजरी तीज
भाद्रपद कृष्ण पक्ष की तृतीया को, यानी 29 अगस्त को कज्जली या कजरी तीज है। निर्णयसिन्धु के पृष्ठ 123, अहल्या कामधेनु के पृष्ठ 27 के अनुसार इस दिन श्री विष्णु की पूजा की जाती है। इस दिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिये और कुंवारी कन्याएं अच्छे वर की प्राप्ति के लिये ये व्रत करती हैं।

बहुला चतुर्थी
कजरी तीज के अगले दिन बहुला चतुर्थी है। निर्णयसिन्धु के पृष्ठ 123 और वर्षकृत्यदीपक के पृष्ठ 67 के अनुसार इस दिन गायों को सम्मानित किया जाता है और पकाया हुआ जौ खाया जाता है। इस दिन गाय के साथ श्री गणेश की पूजा का भी विधान है, क्योंकि चतुर्थी तिथि के अधिष्ठाता श्री गणेश जी हैं। इस चतुर्थी को अपनी संतान की रक्षा के लिये व्रत किये जाने का विधान है। बहुला चतुर्थी के दिन रात 02:53 पर सूर्यदेव पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में प्रवेश करेंगे। सूर्य के पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में प्रवेश से मौसम में तपन के साथ वर्षा भी अधिक मात्रा में होगी। इसके साथ ही सितम्बर महीने की शुरुआत में और भाद्रपद कृष्ण पक्ष की षष्ठी को ललही छठ या हलषष्ठी मनायी जायेगी। जिनकी संतान हैं, उन्हें इस दिन व्रत करना चाहिए। हलषष्ठी का ये दिन बलराम जी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस दिन हल की पूजा की जाती है। इस दिन गाय और दूध का सेवन वर्जित है।

इस भाद्रपद महीने के दौरान जैनियों का पर्युषण पर्व भी मनाया जायेगा। ये पर्व आठ दिनों तक मनाया जाता है। जानकारी के लिये बता दूं सितम्बर महीने की 6 तारीख को जैनियों के चतुर्थी पक्ष का पर्युषण पर्व आरंभ होगा और 13 तारीख को संवत्सरी के साथ खत्म होगा, जबकि पंचमी पक्ष का पर्युषण पर्व 7 सितम्बर को शुरू होकर 14 सितम्बर को खत्म होगा। जैन धर्म का ये पर्व क्षमा पर आधारित है। इस दौरान अपने मन में दूसरे को क्षमा करने का भाव रखना चाहिए।. इस बीच 9 सितम्बर को कुशोत्पाटिनी अमावस्या भी है। ये बड़ा ही पवित्र दिन है। इस दिन सालभर तक किये  जाने वाले धार्मिक कार्यों, अनुष्ठानों, पूजा-पाठ आदि में उपयोग ली जाने वाली कुश को ग्रहण किया जाता है। इस दिन कुश को ग्रहण करके अपने पास इकट्ठा करके रखना चाहिए, जिससे आप पूरे वर्षभर तक कुश का इस्तेमाल धार्मिक कार्यों में कर सकें। इस दिन ‘ऊँ हूं फट फट स्वाहा’ मंत्र से कुश ग्रहण करना चाहिए

कुशोत्पाटिनी अमावस्या के ठीक तीन दिन बाद 12 सितम्बर को हरितालिका तीज व्रत है। इस दिन भगवान शिव और माता गौरी के निमित्त व्रत किया जाता है और उनकी विशेष रूप से पूजा-अर्चना की जाती है। कहते हैं सबसे पहले इस व्रत को माता गौरी ने भगवान शिव को अपने पति के रूप में पाने के लिये किया था। अतः मनचाहा पति पाने के लिये और अगर आपकी पहले से शादी हो रखी है, तो अपना सौभाग्य बनाये रखने के लिये इस दिन आपको ये व्रत करना चाहिए और भगवान शिव और माता गौरी की पूजा करनी चाहिए। हरितालिका तीज के साथ ही उस दिन वैनायकी श्री गणेश चतुर्थी व्रत भी है।

भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की इस चतुर्थी को पत्थर चौथ के नाम से जाना जाता है। शास्त्रों में उस दिन चन्द्र दर्शन निषेध माना गया है। उस दिन चन्द्रमा के दर्शन नहीं करने चाहिए। कहते हैं एक बार श्री गणेश ने चन्द्रदेव से रुष्ट होकर उन्हें ये श्राप दिया था कि भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को तुम्हारा दर्शन निषेध होगा। जो भी इस दिन चन्द्रमा के दर्शन करेगा, उसके ऊपर कलंक लग जायेगा। कलंक लगने के कारण इस चतुर्थी को कलंकी चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है।

सितम्बर को श्री सूर्य षष्ठी व्रत है। इस दिन संतान के सुख के लिये ये व्रत किया जाता है। सूर्य षष्ठी से लेकर अगले 16 दिनों तक लोलार्क कुण्ड काशी में स्नान करने का विधान बताया गया है। सूर्य षष्ठी के दिन षष्ठी देवी का पूजन आदि किया जाता है। साथ ही अनुराधा नक्षत्र में ज्येष्ठा गौरी का आह्वाहन किया जाता है। सूर्य षष्ठी के अगले दिन 16 दिनों तक चलने वाला माता महालक्ष्मी का व्रत भी आरम्भ होगा। इन सोलह दिनों के दौरान माता महालक्ष्मी के निमित्त व्रत किया जाता है और उनकी विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। माता महालक्ष्मी के इस व्रत को करने से व्यक्ति की आर्थिक स्थिति मजबूत होती है, धन लाभ के अनेक साधन खुलते हैं और साथ ही मनचाही मुरादें पूरी होती हैं। अतः इन सोलह दिनों के दौरान माता महालक्ष्मी की पूजा किस प्रकार की जायेगी, इस बारे में हम आपको व्रत के आरम्भ में सारी जानकारी देंगे। इसके अलावा भाद्रपद महीने के अंत में 24 सितम्बर को पूर्णिमा के दिन श्राद्ध भी शुरू हो जायेंगे। ये श्राद्ध भाद्रपद की पूर्णिमा से शुरू होकर आश्विन महीने की अमावस्या तक चलेंगे। इस दौरान पूर्वजों के निमित्त श्राद्ध आदि कार्य किये जायेंगे।

इन सबके अलावा इस भाद्रपद महीने के दौरान 6 सितम्बर को जया एकादशी, 7 सितम्बर को प्रदोष व्रत, 8 सितम्बर को अघोर चतुर्दशी व्रत, 14 सितम्बर को ऋषि पंचमी, 17 सितम्बर को सूर्य की कन्या संक्रांति, सितम्बर को पद्मा एकादशी, 21 सितम्बर को भुवनेश्वरी जयंती, 22 सितम्बर को शनि प्रदोष और 23 सितम्बर को अनंत चतुर्दशी मनायी जायेगी।

Latest Lifestyle News

India TV पर हिंदी में ब्रेकिंग न्यूज़ Hindi News देश-विदेश की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट और स्‍पेशल स्‍टोरी पढ़ें और अपने आप को रखें अप-टू-डेट। Religion News in Hindi के लिए क्लिक करें लाइफस्टाइल सेक्‍शन

Advertisement
Advertisement
Advertisement