इसके बाद सभी लोग उसी जगह पर आए जहां पर वह पत्थर था, लेकिन वहां आकर उसे देखकर सभी भौचक्के हो गए। अब किसी को समझ नहीं आ रहा था कि इस पत्थर का क्या किया जाए, जिसके कारण सभी सोच में पड़ गए। तभी सभी ने निश्चय किया कि अभी अभी चला जाए। कल आकर देखेगे कि इस पत्थर का क्या करना है। सभी लोग घर चले गए। उसी रात में एक व्यक्ति के सपने में शनि देव आए और बोले कि मै शनि देव हूं। जो पत्थर आज तुम्हें मिला उसे अपने गांव लाकर स्थापित करो। तुम्हारें गांव में हमेशा खुशहाली रहेगी।
दूसरे दिन जब वह जगा और सभी गांव वालों को अपना सपना बताया फिर सभी मिलकर उस पत्थर के पास गए और उसे सभी उठाने की कोशिश कने लगे, लेकिन वह शिला तस से मस न हुई। दिनभर लगे रहने के बाद सभी थक हार के घर वापस आ गए। रात में उसी व्यक्ति को फिर सपना आया कि इसे कैसे उठाकर तुम अपने गांव ला सकते है। दूसरे व्यक्ति ने उसी तरह सभी गांव वालों के साथ मिलकर किया। जिससे वह शिला उसने अपने गांव में आकर स्थापित की। और सभी गांव वाले मिलकर उस शिला की पूजा करने लगे। जिसके कारण उस गांव में कभी कोई समस्या नहीं आई।
आपको बता दें कि इस मंदिर में आजतक कोई पुजारी नहीं है। यह मंदिर सभी पुरुषों के लिए खुला है। इस प्रतिमा में केवल सरसों का तेल चढ़ाया जाता है। जिससे सभी भक्तों का मनोकामना पूरी होती है।
शिंगणापुर के शनिदेव अपने आप पर एक अनोखा मंदिर है। यह ऐसा एकलौता मंदिर है जिसकी प्रतिमा खुले आसमान में बनी हुई है। इस मंदिर में कोई भी छत नहीं है। यह प्रतिमा लगभग 5 फीट 9 इंच लंबी व 1 फीट 6 इंच चौड़ी है। इस मंदिर में जाने के अपने ही नियम है।
इस मंदिर में शनि देव को तेल चढानें के लिए पुरुषों को केसरिया रंग के ही वस्त्र धारण करने पडते है साथ ही इन्हीं कपड़ो में स्नान करने के बाद तेल चढाने की परंपरा है। माना जाता है कि ऐसा करने से केवल हमारा शरीर ही शुद्ध नहीं होता है बल्कि मन की भी शुद्धि हो जाती है जिससे हमारे मन में चल रही कोई भी अन्य बात समाप्त हो जाए। साथ ही इस रंग के कपड़े पहनने का तात्पर्य है कि आपके मन में धर्म-कर्म के भाव उत्पन्न हो जाए। इसलिए इस रंग के वस्त्र धारण किए जाते है।