वैशाख कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि और सोमवार का दिन है। त्रयोदशी तिथि आज पूरा दिन पार करके तड़के 3 बजकर 12 मिनट तक रहेगी। उसके बाद चतुर्दशी तिथि शुरू हो जायेगी। पंचांग के अनुसार प्रत्येक महीने में दो पक्ष होते हैं- एक कृष्ण पक्ष और दूसरा शुक्ल पक्ष। इन दोनों ही पक्षों की त्रयोदशी तिथि को भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित प्रदोष व्रत किया जाता है। सप्ताह के सातों दिनों में से जिस दिन प्रदोष व्रत पड़ता है, उसी के नाम पर प्रदोष व्रत का नामकरण किया जाता है और आज सोमवार का दिन है। लिहाजा आज सोम प्रदोष व्रत (Som Pradosh Vrat) किया जायेगा।
आचार्य इंदु प्रकाश के अनुसार सोमवार का दिन भगवान शंकर का दिन माना जाता है। जिस वजह से आज के प्रदोष व्रत का महत्व और भी बढ़ गया है। प्रदोष व्रत में प्रदोष काल का बहुत ही महत्व होता है। आपको पता ही होगा कि- प्रदोष काल उस समय को कहा जाता है, जब दिन छिपने लगता है, यानि सूर्यास्त के ठीक बाद और रात्रि के प्रथम प्रहर को प्रदोष काल कहा जाता है।
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सोम प्रदोष व्रत शुभ मुहूर्त
- त्रयोदशी तिथि प्रारंभ- 20 अप्रैल को सुबह 12 बजकर 42 मिनट
- त्रयोदशी तिथि समाप्त- 21 अप्रैल को सुबह 3 बजकर 11 मिनट
प्रदोष व्रत के दिन प्रदोष काल में यानि शाम के समय में भगवान शिव और माता पार्वती की विधि-विधान से पूजा करना चाहिए। साथ ही शिव प्रतिमा या शिवलिंग के दर्शन करना चाहिये। यहां एक बात का ध्यान रखें कि कोरोना की वजह से जो स्थिति बनी है इसमे जरुरी नहीं कि- शिव प्रतिमा या शिवलिंग का दर्शन करने आप घर से बाहर ही जाये। आप घर पर ही फोटो या इंटरनेट के माध्यम से शिव प्रतिमा या शिवलिंग का दर्शन कर सकते है। आज के दिन जो जातक भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करता है, उसे जीवन में सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है। साथ ही संतान के इच्छुक जातकों के लिए सोम प्रदोष का व्रत करना बहुत ही लाभदायक होता है। .
सोम प्रदोष व्रत की पूजा विधि
ब्रह्ममुहूर्त में उठ कर सभी कामों से निवृत्त होकर भगवान शिव का स्मरण करें। इसके साथ ही इस व्रत का संकल्प करें। इस दिन भूल कर भी कोई आहार न लें। शाम को सूर्यास्त होने के एक घंटें पहले स्नान करके सफेद कपड़े पहने। इसके बाद ईशान कोण में किसी एकांत जगह पूजा करने की जगह बनाएं। इसके लिए सबसे पहले गंगाजल से उस जगह को शुद्ध करें फिर इसे गाय के गोबर से लिपे। इसके बाद पद्म पुष्प की आकृति को पांच रंगों से मिलाकर चौक को तैयार करें।
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इसके बाद आप कुश के आसन में उत्तर-पूर्व की दिशा में बैठकर भगवान शिव की पूजा करें। भगवान शिव का जलाभिषेक करें साथ में ऊं नम: शिवाय: का जाप भी करते रहें। इसके बाद विधि-विधान के साथ शिव की पूजा करें फिर इस कथा को सुनें।
कथा समाप्ति के बाद हवन सामग्री मिलाकर 11, 21 या 108 बार “ऊं ह्रीं क्लीं नम: शिवाय स्वाहा” मंत्र से आहुति दें। उसके बाद शिव जी की आरती करें। इसके बाद सभी लोगों को आरती दें। फिर प्रसाद वितरित करें। उसके बाद भोजन करें। भोजन में केवल मीठी सामग्रियों का इस्तेमाल करें।