तस्वीर में दिखाएं गए पत्थर से टपकता है पानी और मंदिर के बाहर से ली गई भगवान की तस्वीर
इतना ही नही भगवान विष्णु के अब तक जितने अवतार हो चुके है और जो बाकी है यानी कि 10 अवतार भगवान जगन्नाथ जी के मूर्ति के चारों ओर मूर्ति के रुप में अंकित है। साथ ही विष्णु का आखिरी अवतार कल्कि भी अंकित है। इस मंदिर की दीवारें 14 फुट मोटी है। इस मंदिर के अंदर गर्भ गर्ह में चारों ओर खम्बें भी है जिनमें बेहतरीन तरीके से नक्काशी की गई है।
इस मंदिर में जाने के लिए आपको दो छोटे द्वार से झुक कर निकलना पड़ता है। फिर भगवान जगन्नाथ की करीब 15 फीट ऊंची मूर्ति सुभद्रा और बलराम गर्भ ग्रह के पीछें की दीवार से थोड़ा हटकर स्थापित है। जिसके पीछें से भक्तगण भगवान की परिक्रमा करते है। अपनी मन्नत मन में बोलते है। जिससे भगवान उनकी बात सुन उसे पूरा करें।
माना जाता है कि इस मंदिर में जो भी मनोकामना मांगो वो पूर्ण होती है। बस भगवान की पूजा अर्चना सच्चें मन से की गई हो।
तमाम सर्वेक्षणों के बाद भी इसके निर्माण का सही समय पुरातत्व वैज्ञानिक भी नहीं लगा सके हैं। कि यह मंदिर कब और किसने बनवाया। इतना ही बता पाएं कि मंदिर का अंतिम जीर्णोद्धार 11वीं सदी में हुआ था। इसके पहले कब और कितनी बार जीर्णोद्धार हुए यह आज भी एक रहस्य बना हुआ है। यह मंदिर अब पुरातत्व विभाग के सर्वेक्षण में है। वही इस मंदिर को ठीक तरह से चारों तरफ का निर्माण करा रहे है।
इस गांव में रहने वालें बुजुर्ग लोग कहते है कि हमारें दादा, परदादा भी इस बारें में एक पौराणिक कथा कहते है जिसके अनुसार बतातें है कि जब भगवान हनुमान ने सूर्य भगवान को निगला था। तब यह मंदिर अपने आप बना था। साथ ही यह भी माना जाता है कि भगवान श्री राम इस मंदिर में आए थे। इस बात में कितनी सच्चाई है यह नही कह सकते है।
इस मंदिर में रहने वाले पुजारी दिनेश शुक्ल और एक स्थानीय नागरिक प्रणय प्रताप सिंह ने बताया कि कई बार पुरातत्व विभाग और आईआईटी के वैज्ञानिक आए और जांच की, लेकिन न वह लोग न इस मंदिर का वास्तविक निर्माण का समय बता पाएं न ही इस मंदिर के गर्भग्रह से टपकने वाला बारिश के पानी का रहस्य क्या हैं।
वैज्ञानिक इस मंदिर का आकार बौद्ध मठ जैसा दिखता है, जिससे इसके अशोक के द्वारा बनवाया हुआ बताते हैं। लेकिन वहीं बाहर मोर के निशान और चक्र बने होने से चक्रवर्ती सम्राट हर्षवर्धन के समय में बने होने का अंदाजा भी लगाया जाता है। लेकिन इस बात का पुख्ता सबूत आज तक नही मिला है।
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