टीम का नेतृत्व कर रहे लोकनाथ गौड़ ने कहा, "ये लोग भारतीय संस्कृति से काफी प्रभावित हैं। यहां आने के बाद सभी ने गयाजी की पावन भूमि को नमन किया। वे यहां की सनातन परंपरा से काफी प्रभावित हैं। पितृपक्ष में अगले तीन दिनों तक यहां रुक कर अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति और उनके मोक्ष के लिए तर्पण एवं पिंडदान करेंगे।"
उन्होंने बताया कि वे शनिवार को पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान और रविवार को अक्षयवट में कर्मकांड करेंगे। उसके बाद सभी सदस्य नई दिल्ली के लिए रवाना हो जाएंगे।
विदेश से आने वाले पिंडदानियों ने कहा कि उन्होंने गया में पिंडदान के बारे में बहुत कुछ सुन रखा है और उससे प्रभावित होकर वे अपने पूर्वजों को सम्मान देने के लिए यहां आए हैं।
देवघाट में पिंडदान करने के बाद रूस की क्रिकोव अनंतोलल्ला ने कहा, "मैं यहां अपने पति, परिवार और देश में शांति के लिए आई हूं। गया में पूर्वजों को लेकर होने वाले इस अनुष्ठान के बारे में मैंने सुन रखा था, जिससे यहां आने के लिए प्रेरित हुई।"
जर्मनी से आईं युगेनिया क्रेंच ने कहा कि उनके परिवार और घर में कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है, इसलिए वह अपने इस दुर्भाग्य से छुटकारा पाने के लिए यहां आई हैं। उन्होंने कहा, "सनातन धर्म के विषय में मैंने काफी कुछ सुना है। इस कर्मकांड से न केवल पूर्वजों को मुक्ति (मोक्ष) मिलती है, बल्कि वर्तमान स्थिति में भी खुशहाली आती है।"
गौरतलब है कि सभी विदेशी भारतीय वेशभूषा में वैदिक मंत्रोच्चार के बीच पारंपरिक तरीके से इस कर्मकांड में शामिल हो रहे हैं।