देश में दशहरे की धूम मची है। एक तरफ दशहरे पर महिषासुर मर्दिनी देवी दुर्गा की प्रतिमाओं का विसर्जन किया जाएगा तो दूसरी तरफ असत्य पर सत्य की जीत के रूप में जगह जगह रावण दहन होगा। रावण बुराई का प्रतीक था, भगवान राम ने उसका कई दिनों तक चले युद्ध के बाद वध किया औऱ लंका विजय की। रावण को केवल उसके अहंकार ने मारा, यूं उसके अंदर एक कुशल शासक और एक विद्वान मौजूद था लेकिन उसके अहंकार ने उसका और उसके राक्षस कुल का अंत करवाया।
सभी जानते हैं कि रावण भगवान शिव का परम भक्त था। उसने ही शिव तांडव स्त्रोत की रचना की जिसे आज घर घर में वाचन किया जाता है। रावण एक बार अपने मद में अंधा होकर भगवान शिव के कैलाश पर्वत को ही उठाकर ले चला था। उस समय भगवान शिव तपस्या कर रहे थे। रावण ने सोचा कि मैं सोने की लंका में रहता हूं तो मेरे आराध्य शिव कैलाश में जोगी वाला जीवन क्यों जी रहे हैं। उन्हें भी लंका में स्थापित कर देना चाहिए। इसलिए वो शिव के पूरे परिवार को ही कैलाश पर्वत के साथ उठाकर लंका ले जाने के लिए आ गया। नंदी के चेताने के बावजूद जब रावण नहीं माना औऱ उसने कैलाश पर्वत उठा लिया और लंका की तरफ कूच करने लगा। ऐसे में भगवान शिव क्रोधित हो उठए औऱ उन्होंने अपने पैर के अंगूठे से पर्वत दबाया जिसके चलते रावण और पर्वत दोनों ही नीचे धंस गए। रावण का हाथ कैलाश पर्वत के नीचे दब गया औऱ वो चीत्कार करने लगा। वो बेबस हो गया था और वो जान चुका था कि जिस मद में अंधा होकर उसने भगवान का पर्वत उठाने का कुप्रयास किया है, वो उसे दंड जरूर देंगे।
बेबस रावण चीत्कार कर रहा था, वो लगातार क्षमा मांग रहा था। तब भगवान शिव के मंत्रियों ने उसे सलाह दी कि रावण शिव की स्तुति करता जाए। तब रावण ने जिस तरह मंत्रोच्चार करते हुए शिव का गुणगान औऱ शिव स्तुति की वो ही शिव तांडव स्त्रोत कहा जाता है। सामदेव में शिव तांडव स्त्रोत का पूरा वर्णन है कि इसे करने से कैसे शनि के प्रभाव को कम किया जा सकता है।
कई लोग समझते हैं कि शिव तांडव स्त्रोत शिव की महिमा को दर्शाने के लिए लिखा गया। जबकि हकीकत ये है कि दर्द से चीत्कार करते रावण ने शिव से अपने आप की गलतियों को माफ करने के लिए दुख सहते हुए इसकी रचना की थी।
कहा जाता है कि मुश्किल में फंसे लोग, शनि की साढ़ेसाती भुगत रहे लोग अगर इस तांडव स्त्रोत को पढ़ें तो उन्हें लाभ होता है औऱ भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है।
वो लोग जिनकी कुंडली में काल सर्प योग या पितृ दोष होता है, उन्हें भी इसका पाठ करना चाहिए।