सुख प्राप्ति के लिए
जटा भुजं गपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा- कदंबकुंकुम द्रवप्रलिप्त दिग्वधूमुखे।
मदांध सिंधु रस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे मनो विनोदद्भुतं बिंभर्तु भूतभर्तरि॥4॥
या फिर
मनो विनोदद्भुतं बिंभर्तु भूतभर्तरि।
करियर में आकाश की बुलंदियों को छूने के लिए
सहस्र लोचन प्रभृत्य शेषलेखशेखर- प्रसून धूलिधोरणी विधूसरांघ्रिपीठभूः।
भुजंगराज मालया निबद्धजाटजूटकः श्रिये चिराय जायतां चकोर बंधुशेखरः॥5॥
या फिर
श्रिये चिराय जायतां चकोर बंधुशेखरः|
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