आज शीतलाष्टमी है, शीतला अष्टमी को 'बसौड़ा' भी कहा जाता है। मां शीतला को इस दिन बासी खाने का भोग लगाते हैं। यह व्रत चैत्र महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को होता है। इस दिन शीतला माता की विधि विधान के साथ पूजा की जाती है। इसके लिए एक रात पहले पूरी साफ सफाई से मां शीतला माता के लिए खाना बनाते हैं। अगले दिन सुबह उठकर स्नान के बाद मां शीतला माता को बासी भोग लगाया जा है और यही खाना सभी घरवालों को प्रसाद के रूप में दिया जाता है। इस दिन घर में चूल्हा नहीं जलाया जाता है।
रोगों से मुक्ति देती हैं मां शीतला
मां शीतला माता रोगों से मुक्ति दिलाती हैं। हिंदू धर्मशास्त्रों के मुताबिक जो भी भक्त सच्चे मन से मां शीतला की पूजा अर्चना करता है उसे सभी तरह के रोगों से मुक्ति मिलीत है। मां शीतला चेचक और संक्रामक रोगों से भक्तों की रक्षा करती हैं।
मां शीतला माता गधे की सवारी करती हैं, इनके एक हाथ में कलश और दूसरे हाथ में झाड़ू होता है। ऐसा माना जाता है कि इस कलश में सभी 33 करोड़ देवी-देवता वास करते हैं।
शीतला अष्टमी की पूजा विधि
शीतला अष्टमी के दिन सुबह स्नान करने के बाद मां शीतला की पूजा करते हैं और पिछली रात बने बासी खाने का भोग लगाते हैं। भोग चांदी के चौकोर टुकड़े पर मां शीतला के उकेरे चित्र को अर्पित किया जाता है। इसके साथ ही मां शीतला को घर पर बनाई खीर भी अर्पित की जा सकी है।
इस दिन बासी खाना खाने की भी खास वजह है। शीतला अष्टमी तक गर्मियां शुरू होने लगती हैं और इस दिन के बाद से बासी खाना नहीं खाने की हिदायत दी जाती है।
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शीतला अष्टमी की कथा
हिंदू धर्म में प्रचलित कथा के मुताबिक एक एक बूढ़ी औरत और उसकी दो बहुओं ने शीतला माता का व्रत रखा। इस दिन मां को बासी चावल चढ़ाए जाते हैं लेकिन दोनों बहुओं के बच्चे छोटे थे, उन्हें लगा कि कहीं बासी खाना खाकर बच्चे बीमार ना हो जाए इस वजह से उन्होंने ताजा खाना बना लिया। सास को जब इस बारे में पता चला तो वो नाराज हो गईं, कुछ समय बाद बहुओं के दोनों बेटों की मौत हो गई। सास ने दोनों बहुओं को घर से निकाल दिया।
बच्चों के शवों को लेकर बहुएं घर से निकल गईं और रास्ते में विश्राम के लिए रुकीं। वहां उन दोनों को दो बहनें मिली ओरी और शीतला। दोनों बहनें अपने सिर मे पड़े जुओं से परेशान थीं। दोनों बहुओं ने उन्हें परेशान देखा तो दोनों का सिर साफ करने लगी और दोनों बहनों को आराम मिला। इसके उन दोनों ने आशीर्वाद दिया कि तुम्हारी गोद हरी भरी रहे। इतना सुनते ही दोनों बहुएं रोने लगी और अपने मृतक बच्चों को उन्हें दिखाया। ये देखकर शीतला ने बताया कि ये उनके कर्मों का फल है। उन्होंने बासी चावल नहीं बनाया इस वजह से ऐसा हुआ।
ये जानकर दोनों ने मां शीतला से माफी मांगी और बच्चों को फिर से जीवित करने को कहा। माता ने उन्हें जीवित कर दिया। इसी दिन से हर अष्टमी को मां शीतला के व्रत का प्रचलन शुरू हुआ।