आज माघ कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि और सोमवार का दिन है आज षटतिला एकादशी व्रत है। आज के दिन तिल का बड़ा ही महत्व है। इसके साथ ही आज व्रत रखने से भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है। साथ ही आरोग्यता तथा सम्पन्नता आती है। आज के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से व्यक्ति की हर मनोकामना पूरी होती है और उसे जीवन में वैभव प्राप्त होता है। जानें षटतिला एकादशी का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत कथा।
षटतिला एकादशी के दिन पूजा का शुभ मुहूर्त-
आचार्य इंदु प्रकाश के अनुसार षटतिला एकादशी 20 जनवरी को प्रात: 2 बजकर 51 मिनट पर लग रही है जो कि 21 जनवरी को प्रात: 2 बजकर 6 मिनट तक रहेगी।
षटतिला एकादशी व्रत पूजा विधि
इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर भगवान का मनन करते हुए सबसे पहले व्रत का संकल्प करें। इसके बाद सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान करें। इसके बाद पूजा स्थल में जाकर भगवान श्री कृष्ण की पूजा विधि-विधान से करें। इसके लिए धूप, दीप, नैवेद्य आदि सोलह चीजों से करने के साथ रात को दीपदान करें। इस दिन रात को सोए नहीं।
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सारी रात जागकर भगवान का भजन-कीर्तन करें। इसी साथ भगवान से किसी प्रकार हुआ गलती के लिए क्षमा भी मांगे। अगले दूसरे दिन यानी की 5 फरवरी, शुक्रवार के दिन सुबह पहले की तरह करें। इसके बाद ब्राह्मणों को ससम्मान आमंत्रित करके भोजन कराएं और अपने अनुसार उन्हे भेट और दक्षिणा दे। इसके बाद सभी को प्रसाद देने के बाद खुद भोजन करें।
व्रत के दिन व्रत के सामान्य नियमों का पालन करना चाहिए। इसके साथ ही साथ जहां तक हो सके व्रत के दिन सात्विक भोजन करना चाहिए। भोजन में उसे नमक का इस्तेमाल बिल्कुल नहीं करना चाहिए। इससे आपको हजारों यज्ञों के बराबर फल मिलेगा।
षटतिला एकादशी की व्रत कथा
एक बार भगवान विष्णु ने नारद जी को एक सत्य घटना से अवगत कराया और नारदजी को एक षटतिला एकादशी के व्रत का महत्व बताया। इस एकादशी को रखने की जो कथा भगवान विष्णु जी ने नारद जी को सुनाई वह इस प्रकार से है
प्राचीन काल में पृथ्वी लोक में एक ब्राह्मणी रहती थी। वह हमेशा व्रत करती थी लेकिन किसी ब्राह्मण अथवा साधु को कभी दान आदि नहीं देती थी। एक बार उसने एक माह तक लगातार व्रत रखा। इससे उस ब्राह्मणी का शरीर बहुत कमजोर हो गया था। तब भगवान विष्णु ने सोचा कि इस ब्राह्मणी ने व्रत रख कर अपना शरीर शुद्ध कर लिया है अत: इसे विष्णु लोक में स्थान तो मिल जाएगा परन्तु इसने कभी अन्न का दान नहीं किया। इससे ब्राह्मणी की तृप्ति होना कठिन है। इसलिए भगवान विष्णु ने सोचा कि वह भिखारी का वेश धारण करके उस ब्राह्मणी के पास जाएंगें और उससे भिक्षा मांगेगे।
यदि वह भिक्षा दे देती है तब उसकी तृप्ति अवश्य हो जाएगी और भगवान विष्णु भिखारी के वेश में पृथ्वी लोक पर उस ब्राह्मणी के पास जाते हैं और उससे भिक्षा मांगते हैं। वह ब्राह्मणी विष्णु जी से पूछती है - महाराज किसलिए आए हो? विष्णु जी बोले मुझे भिक्षा चाहिए। यह सुनते ही उस ब्राह्मणी ने मिट्टी का एक ढे़ला विष्णु जी के भिक्षापात्र में डाल दिया। विष्णु जी उस मिट्टी के ढेले को लेकर स्वर्गलोक में लौट आये।
कुछ समय के बाद ब्राह्मणी ने अपना शरीर त्याग दिया और स्वर्ग लोक में आ गई। मिट्टी का ढेला दान करने से उस ब्राह्मणी को स्वर्ग में सुंदर महल तो मिल गया परन्तु उसने कभी अन्न का दान नहीं किया था इसलिए महल में अन्न आदि से बनी कोई सामग्री नहीं थी। वह घबराकर विष्णु जी के पास गई और कहने लगी कि हे भगवन मैंने आपके लिए व्रत आदि रखकर आपकी बहुत पूजा की उसके बावजूद भी मेरे घर में अन्नादि वस्तुओं का अभाव है। ऐसा क्यों है? तब विष्णु जी बोले कि तुम पहले अपने घर जाओ।
तुम्हें मिलने और देखने के लिए देवस्त्रियां आएगी, तुम अपना द्वार खोलने से पहले उनसे षटतिला एकादशी की विधि और उसके महात्म्य के बारे में सुनना तब द्वार खोलना। ब्राह्मणी ने वैसे ही किया। द्वार खोलने से पहले षटतिला एकादशी व्रत के महात्म्य के बारे में पूछा। एक देवस्त्री ने ब्राह्मणी की बात सुनकर उसे षटतिला एकादशी व्रत के महात्म्य के बारे में जानकारी दी। उस जानकारी के बाद ब्राह्मणी ने द्वार खोल दिए। देवस्त्रियों ने देखा कि वह ब्राह्मणी न तो गांधर्वी है और ना ही आसुरी है। वह पहले जैसे मनुष्य रुप में ही थी। अब उस ब्राह्मणी को दान ना देने का पता चला।
अब उस ब्राह्मणी ने देवस्त्री के कहे अनुसार षटतिला एकादशी का व्रत किया। इससे उसके समस्त पापों का नाश हो गया। वह सुंदर तथा रुपवति हो गई। अब उसका घर अन्नादि सभी प्रकार की वस्तुओं से भर गया। इस प्रकार सभी मनुष्यों को लालच का त्याग करना चाहिए। किसी प्रकार का लोभ नहीं करना चाहिए।
षटतिला एकादशी के दिन तिल के साथ अन्य अन्नादि का भी दान करना चाहिए। इससे मनुष्य का सौभाग्य बली होगा। कष्ट तथा दरिद्रता दूर होगी। विधिवत तरीके से व्रत रखने से स्वर्ग लोक की प्राप्ति होगी।