Wednesday, November 27, 2024
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शरद पूर्णिमा: 16 कलाओं के साथ दिखेगा चंद्रमा, ऐसे पूजा कर पाएं लक्ष्मी की कृपा

इस दिन पूरा चांद दिखाई देने के कारण इसे महापूर्णिमा कहा गया है। इस दिन चंद्रमा 16 कलाओं से परिपूर्ण होगा। जिसके कारण इस दिन का महत्व और बढ़ जाता है। साथ ही इस दिन माता लक्ष्मी अपने वाहन उल्लू में सवार होकर धरती में आती है। जानिए कथा और पूजाविधि के..

India TV Lifestyle Desk
Updated on: October 13, 2016 19:31 IST
sharad purnima- India TV Hindi
sharad purnima

नई दिल्ली: शरद पूर्णिंमा का व्रत संतान की लंबी उम्र और मंगल कामना के लिए किया जाता है। इस बार शरद पूर्णिमा 15 अक्टूबर को है। जो कि शनिवार का दिन है। इस दिन पूरा चांद दिखाई देने के कारण इसे महापूर्णिमा कहा गया है। इस दिन चंद्रमा 16 कलाओं से परिपूर्ण होगा। जिसके कारण इस दिन का महत्व और बढ़ जाता है।  इसके साथ ही माना जाता है कि इस दिन माता लक्ष्मी अपने वाहन उल्लू में सवार होकर धरती में आती है। माता यह देखती है उनका कौन भक्त रात में जागकर उनकी भक्ति कर रहा है। माना जाता है जो भक्त इस रात में जागकर मां लक्ष्मी की पूजा अर्चना करते हैं मां लक्ष्मी की उन पर अवश्य ही कृपा होती है।

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ज्योतिषियों की मानें तो इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा सच्चें मन और श्रृद्धा के साथ करने से सभी मनोकामनाएं, धन की प्राप्ति होती है। यदि उसकी कुण्डली में धन योग नहीं भी हो तब भी माता उन्हें धन-धान्य से अवश्य ही संपन्न कर देती हैं। उसके जीवन से निर्धनता का नाश होता है, इसलिए धन की इच्छा रखने वाले हर व्यक्ति को इस दिन रात को जाग कर जरुर माता लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए। जानिए पूजा विधि और कथा।

ऐसे करें पूजा

नारदपुराण के अनुसार शरद पूर्णिमा की रात मां लक्ष्मी अपने हाथों में वर और अभय लिए घूमती हैं। इस दिन वह अपने जागते हुए भक्तों को धन-वैभव का आशीष देती हैं। इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए। शाम के समय चन्द्रोदय होने पर चांदी, सोने या मिट्टी के दीपक जलाने चाहिए। इस दिन घी और चीनी से बनी खीर चन्द्रमा की चांदनी में रखनी चाहिए। जब रात्रि का एक पहर बीत जाए तो यह भोग लक्ष्मी जी को अर्पित कर देना चाहिए।

शरद पूर्णिमा को प्रात:काल ब्रह्ममुहूर्त में सोकर उठें। इसके बाद नित्यकर्म से निवृत्त होकर स्नान करें। साफ कड़े पहनें। अपने आराध्य देव को स्नान कराकर उन्हें सफेद रंग के सुंदर वस्त्राभूषणों से सुशोभित करें। एक चौकी में एक लोटे में जव भर कर रखें और इलके ऊपर एक कटोरी रखें। फिर लोटे में आटे और हल्दी ले लेप करके स्वास्तिक का चिन्ह बनाएं। इसके बाद पूजा शुरू करें। इसके लिए अंब, आचमन, वस्त्र, गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, ताम्बूल, सुपारी, दक्षिणा आदि से अपने आराध्य देव का पूजन करें।

इसके साथ ही गाय के दूध से बनी खीर में घी तथा चीनी मिलाकर पूरियां बनाएं और अर्द्धरात्रि के समय भगवान का भोग लगाएं। इसके बाद कथा सुनें।

व्रत सुनने से लिए एक लोटे में जल तथा गिलास में गेहूं, पत्ते के दोने में रोली तथा चावल रखकर कलश की वंदना करके दक्षिणा चढ़ाएं। फिर तिलक करने के बाद गेहूं के 13 दाने हाथ में लेकर कथा सुनें। इसके बाद  गेहूं के गिलास पर हाथ फेरकर मिश्राणी के पांव का स्पर्श करके गेहूं का गिलास उन्हें दे दें। साथ ही जो लोटे में जल है उसे रात में चंद्रमा को अर्घ्य दें। इसके बाद खीर का भोग लगाकर चांड की रोशनी में रख दें और दूसरें दिन इस खीर को प्रसाद के रूप में खाएं।

अगली स्लाइड में पढ़े कथा के बारे में

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