आश्विन महीने की इस पूर्णिमा को 'शरद पूनम' या 'रास पूर्णिमा' भी कहते हैं। शरद पूर्णिमा की रात बड़ी ही खास होती है। इस रात को चांद की रोशनी बहुत ही महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस साल शरद पूर्णिमा 19 अक्टूबर, मंगलवार को है। हालांकि हिंदू पंचांग की तिथि के कारण 20 अक्टूबर को भी कुछ जगहों पर मनाई जाएगी।
कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात को चांद की रोशनी में कुछ ऐसे तत्व मौजूद होते हैं जो हमारे शरीर और मन को शुद्ध करके एक पॉजिटिव ऊर्जा प्रदान करते हैं। दरअसल इस दिन चंद्रमा पृथ्वी के काफी नजदीक होता है, जिसके चलते चंद्रमा की रोशनी का और उसमें मौजूद तत्वों का सीधा और पॉजिटिव असर पृथ्वी पर पड़ता है।
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चांद मन को करें शांत
'चन्द्रमा मनसो जातः' यानि चन्द्रमा मन का कारक है। जब चन्द्रमा पृथ्वी के नजदीक होगा तो जाहिर सी बात है कि ये हमारे मन पर और भी अधिक प्रभाव डालेगा। जो लोग मानसिक रूप से परेशान रहते हैं, जो डिप्रेशन में रहते हैं, जिन्हें किसी काम को लेकर बहुत डर लगा रहता है, जो बहुत जल्दी इरिटेट हो जाते हैं या जो मन से कमजोर होते हैं, उनके लिये आज का दिन बहुत ही महत्वपूर्ण है । ृ
शरद पूर्णिमा का शुभ मुहूर्त
- पूर्णिमा तिथि का प्रारंभ 19 अक्टूबर को शाम 7 बजकर 4 मिनट से शुरू होकर 20 अक्टूबर रात 08 बजकर 26 मिनट पर समाप्त होगी।
- पूजन का शुभ मुहूर्त शाम 05 बजकर 27 मिनट से चंद्रोदय के बाद रहेगा।
शरद पूर्णिमा पूजा विधि
इस दिन लक्ष्मी नारायण की पूजा की जाती है। इस दिन मां लक्ष्मी के आठ रूप धनलक्ष्मी, धान्यलक्ष्मी, राज लक्ष्मी, वैभव लक्ष्मी, ऐश्वर्य लक्ष्मी, संतान लक्ष्मी, कमला लक्ष्मी और विजय लक्ष्मी की विधि-विधान से पूज की जाती है। इस दिन ब्रह्ममुहूर्त में उठकर सभी कामों ने निवृत्त होकर स्नान करें और मंदिर को साफ करें। इसके बाद पूजा के लिए एक साफ चौकी में लाल या पीले रंग का कपड़ा डालकर मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु की तस्वीर या मूर्ति रखें। इसके बाद गंगाजल छिड़कें और फूल, माला चढ़ाकर सिंदूर, रोली, अक्षत लगाएं फिर सफेल या पीले रंग का भोग लगाएं। इसके बाद घी का दीपक जलाते हुए कथा पढ़ें। कथा पढ़ने के बाद आरती करते हुए आचवन करें।
नारदपुराण के अनुसार इस दिन रात में मां लक्ष्मी अपने हाथों में वर और अभय लिए घूमती हैं। जो भी उन्हें जागते हुए दिखता है उन्हें वह धन-वैभव का आशीष देती हैं। शाम के समय चन्द्रोदय होने पर चांदी, सोने या मिट्टी के दीपक जलाने चाहिए। इस दिन घी और चीनी से बनी खीर चन्द्रमा की चांदनी में रखनी चाहिए। जब रात्रि का एक पहर बीत जाए तो यह भोग लक्ष्मी जी को अर्पित कर देना चाहिए।
शरद पूर्णिमा व्रत कथा
पौराणिक मान्यता के अनुसार एक साहुकार की दो बेटियां थीं। वैसे तो दोनों बेटियां पूर्णिमा का व्रत रखती थीं। लेकिन छोटी बेटी व्रत अधूरा करती थी। इसका परिणाम यह हुआ कि छोटी पुत्री की संतान पैदा होते ही मर जाती थी। उसने पंडितों से इसका कारण पूछा तो उन्होंने बताया, 'तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती थीं, जिसके कारण तुम्हारी संतानें पैदा होते ही मर जाती हैं। पूर्णिमा का व्रत विधिपूर्वक करने से तुम्हारी संतानें जीवित रह सकती हैं।' उसने पंडितों की सलाह पर पूर्णिमा का पूरा व्रत विधिपूर्वक किया। बाद में उसे एक लड़का पैदा हुआ, जो कुछ दिनों बाद ही मर गया। उसने लड़के को एक पीढ़े पर लेटा कर ऊपर से कपड़ा ढक दिया। फिर बड़ी बहन को बुलाकर लाई और बैठने के लिए वही पीढ़ा दे दिया। बड़ी बहन जब उस पर बैठने लगी तो उसका घाघरा बच्चे का छू गया। बच्चा घाघरा छूते ही रोने लगा। तब बड़ी बहन ने कहा, "तुम मुझे कलंक लगाना चाहती थी। मेरे बैठने से यह मर जाता।" तब छोटी बहन बोली, "यह तो पहले से मरा हुआ था। तेरे ही भाग्य से यह जीवित हो गया है। तेरे पुण्य से ही यह जीवित हुआ है। उसके बाद नगर में उसने पूर्णिमा का पूरा व्रत करने का ढिंढोरा पिटवा दिया।