सभी गोपियां सज-धज कर नियत समय पर यमुना तट पर पहुंच गई। इसके बाद भगवान श्री कृष्ण ने रास आरंभ किया। माना जाता है कि वृंदावन स्थित निधिवन ही वह स्थान है जहां श्रीकृष्ण ने महारास रचाया था।
यहां भगवान ने एक अद्भुत लीला दिखाई जितनी गोपियां थीं, उतने ही श्रीकृष्ण के प्रतिरूप प्रकट हो गए। सभी गोपियों को उनका कृष्ण मिल गया और दिव्य नृत्य एवं प्रेमानंद शुरू हुआ। माना जाता है कि आज भी शरद पूर्णिमा की रात में भगवान श्री कृष्ण गोपिकाओं के संग रास रचाते हैं। इसी कारण शरद पूर्णिमा के दिन रासलीला आज भी होती है।
इस कारण श्री कृष्ण ने चुना इस दिन को
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार माना जाता है कि चंद्रमा मन कारक है। इसे सौन्दर्य, कला एवं सहित्य को भी प्रभावित करने वाला माना गया है। साथ ही जल तत्व का भी कारक है। शरद पूर्णिमा को बलवान चन्द्रमा होने के कारण मानसिक बल प्राप्त होता है जो जीवन के चार पुरूषार्थ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को पूरा करने में सहायक होता है। इसी कारण शरद पूर्णिमा की रात को महारास के लिए चुना गया। ताकि प्रेम करने वाला और प्रेम को प्राप्त करने वाला दोनों संतुष्ट हो सके।